कभी किसी ने स्त्री को ढूंढ़ने का प्रयास किया है, ढूंढ़ने का अभिप्राय यह नहीं कि कहीं खो गई हैं, स्त्री के अंतर्मन की गहराई को जानने का प्रयास स्त्री कोई वस्त्र या विचार नहीं जिसको धारण या अध्ययन किया जा सके, स्त्री त्याग और समर्पण कि वह प्रतिमूर्ति है, जिसकी व्याख्या करने पर शब्द भी बौने हो जाएं।
स्त्री को जानने से अधिक आवश्यक है, उसे समझा जाएं स्त्री अपने संभावनाओं को जीवित रखते हुए नकारात्मक परिस्थितियां होते हुए भी सकारात्मक सोच का त्याग नहीं करती, भले ही स्त्री मन मुताबिक जीवन नहीं जी पाती, फिर भी अपने अस्तित्व को जीवित रखती है।
स्त्री वसुधा की तरह जन्मना और पालन करना जानती है, अपनी अपेक्षाओं को उपेक्षित होते हुए भी देख कर हंस के टाल जाती, इसका अर्थ यह नहीं कि स्त्री दुर्बल एवं असहाय है, अपितु स्त्री जीवन के आत्मबल का प्रमाण है।
स्त्री गंगा की तरह वह पवित्र धारा है, जो प्रत्येक संबंधों को जोड़ते हुए समाज को तृप्त करती है, स्त्री चरित्र पर कितनी ही पुस्तक, रचना, कविता लिखी गई। स्त्री चरित्र की व्याख्या करना सहज नहीं। स्त्री सृष्टि है जिस पर प्रकृति निर्भर करती है।
प्रार्थना राय
देवरिया, उत्तर प्रदेश