सिंग्रामपुर, मध्यप्रदेश के दमोह जिले की तहसील जबेरा अंतर्गत आने वाली एक ग्राम पंचायत है, जिसकी दूरी दमोह मुख्यालय से लगभग 54 कि.मी. एवं जबलपुर जिले से लगभग 51 किमी है, जो गोंड शासक राजा दलपत शाह एवं रानी दुर्गावती की राजधानी रही है। सिंग्रामपुर के समीप ही रानी दुर्गावती का किला है जो सिंगौरगढ़ किले के नाम से प्रसिद्ध है। सिंग्रामपुर में राजा दलपत शाह की समाधी स्थल एवं रानी दुर्गावती की विशाल प्रतिमा स्थापित है।
मध्यप्रदेश का महाकौशल एवं आंशिक रूप से बुन्देलखण्ड क्षेत्र तत्कालीन गोंड साम्राज्य के अंतर्गत आता था। वर्तमान में यह क्षेत्र जबलपुर एवं सागर संभाग के अधीन है। इस साम्राज्य के अधीन 52 गढ़ आते थे। इस साम्राज्य में संग्राम शाह, दलपत शाह और रानी दुर्गावती ने सन् 1500 से 1564 तक शासन किया तथा मुगल आक्रमणकारियों से राज्य की रक्षा की। ब्रिटिश साम्राज्य के विरूद्ध इनका संघर्ष उल्लेखनीय रहा है।
सिंग्रामपुर कैसे पहुंचे
सिंग्रामपुर सड़क मार्ग के माध्यम से सीधा पहुंचा जा सकता है जो दमोह मुख्यालय से 54 कि.मी. एवं जबलपुर से 51 कि.मी. की दूरी पर है। भोपाल राजधानी से नर्मदापुरम होते हुये जबलपुर से सिंग्रामपुर पहुंचा जा सकता है। भोपाल से सागर होते हुये दमोह से सिंग्रामपुर पहुंचा जा सकता है।
राजा दलपत शाह
राजा दलपत शाह गोंडवाना साम्राज्य के 49वें राजा थे, जो रानी दुर्गावती के पति थे। उन्होंने सिंग्रामपुर के समीप स्थित सिंगौरगढ़ के किले से शासन किया। सिंग्रामपुर के समीप ही इनका समाधी-स्थल मौजूद है।
रानी दुर्गावती
वीरांगना रानी दुर्गावती भारतीय इतिहास की एक महान शासक थीं, जिन्होंने अपनी मातृभूमि और आत्म-सम्मान की रक्षा के लिये अपने प्राणों का बलिदान दिया। दमोह जिले की तहसील जबेरा के ग्राम सिंग्रामपुर के पास सिंगौरगढ़ का किला स्थापित है। सिंगौरगढ़ के किले पर रानी दुर्गावती का आधिपत्य था। रानी दुर्गावती महोबा के चन्देलवंशीय राजा कीरत सिंह चन्देल की एक मात्र सन्तान थी। रानी दुर्गावती की जयंती 5 अक्टूबर को मनाई जाती है।
रानी दुर्गावती का जन्म 5 अक्टूबर 1524 को कालिंजर (वर्तमान में जिला बांदा) के किले में हुआ था। गोंडवाना राज्य के राजा संग्रामशाह मड़ावी चंदेल राजकुमारी दुर्गावती से बहुत प्रभावित थे, सन् 1542 में संग्रामशाह ने अपने पुत्र दलपतशाह मड़ावी से दुर्गावती का विवाह कराया। सन् 1545 में रानी दुर्गावती ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम वीरनारायण रखा। सन् 1950 में राजा दलपतशाह की असामयिक मृत्यु के बाद रानी दुर्गावती ने उल्प-वयस्क राजा की संरक्षिका के रूप में 1564 तक गोंड साम्राज्य की बागडोर सम्भाली।
रानी दुर्गावती को मुगल साम्राज्य के खिलाफ अपने राज्य की रक्षा के लिए गर्व से स्मरण किया जाता है। उन्होंने अपने मान-सम्मान, धर्म की रक्षा एवं स्वतंत्रता के लिए युद्ध भूमि को चुना और अनेक बार शत्रुओं को पराजित करते हुए अपना बलिदान दे दिया।