अंतर्राष्ट्रीय समरस साहित्य संस्थान एवं जयपुर काव्य साधक की संयुक काव्य गोष्ठी 10 जून को गंगापुर से पधारे वरिष्ठ साहित्य गोपिनाथ “चर्चित” के मुख्य आतिथ्य एवं समरस संस्थान के अध्यक्ष वरिष्ठ गीतकार लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला की अध्यक्षता में काव्य साधक स्टूडियो में वैद्य भगवान सहाय पारीक जी की ढूँढाड़ी में सरस्वती वंदना के साथ प्रारम्भ हुई। डॉ एनएल शर्मा में अवसरवादी नेताओं पर व्यंग्य रचना प्रस्तुत की। कवयित्री रंजीता जोशी ने माँ को समर्पित तो अमित तिवारी “आजाद” ने पिता को समर्पित मार्मिक रचना पढ़ी- “पिता आसमान है जिनकी दुआओं से मेरा जहान है, उनके बिना अधूरी है जिंदगी” रचना पढ़ी।
संस्थान के उपाध्यक्ष राव शिवराजपाल सिंह ने महाराणा प्रताप पर रचना पढ़ते कहा कि अधिकांश युद्व जर, जोरू और जमीन के लिए होते हैं, किंतु प्रताप राष्ट्र की अस्मिता बचाने हेत जिंदगी भर लड़ते रहे और दुश्मन के आगे नहीं झुके। अलवर से पधारे मनोज दीक्षित “राज” ने सैनिकों के बलिदान पर ओजपूर्ण रचना सुनाते कहा कि “कफ़न हो सुर्ख तिरंगे का यही अरमान है उनका। दिल धड़कता, तन-मन समर्पित धरती माँ ही मान है उनका” सुना कर भाव-विभोर कर दिया। मनीष मनु (अलवर) ने- पर्यावरण के संदर्भ में “जिंदगी कैसी बैरंग होती जा रही है” पढ़ी। वैद्य भगवान सहाय पारीक ने- “भाग्यवान है वे जिन्हें, मिले पिता का प्यार” और “उल्टी सीख मानने वालों के उल्टे दिन आ जाते है” जैसी भावपुर्ण गीत रचना प्रस्तुत की।
गोष्ठी के सबसे कम उम्र के बाल कवि मास्टर मेहुल पारीक ने बहुत ही गंभीर रचना सागर से भी गहरा, परबत से भी ऊंचा सुनाकर पूत के पग पालने में ही दिख जाते हैं, सिद्ध कर दिया। अमित आजाद की रचना ने भी मुक्त कंठ से प्रशंसा बटोरी।
वरिष्ठ साहित्यकार वरुण चतुर्वेदी ने मुक्तक, व्यंग्य और हास्य रचना से गोष्ठी में हास्य बिखेरा, उनकी एक प्रखर व्यंग्य रचना एक कुंवारा हिंदुस्तानी तिलचट्टा ने तो सबको हंसने पर मजबूर कर दिया। डॉ निशा अग्रवाल ने- “दिल करता चंद सवाल मैं तुझ से कर लूं भारत माता, कहाँ गयी वह खुशबु मिट्टी की जिसमें महक थी, जिसमे चिड़िया की चहक थी। उठो जवानों वापिस लाओ इस मिट्टी की उसी महक को” सुनाकर तालियाँ बटोरी। वरिष्ठ साहित्यकार किशोर परियक “किशोर” ने गंगा दशमी पर रचित- “माँ गंगा रोग-नाशिनी, पाप-नाशिनी और पुण्य-दायिनी है” और महाराणा प्रताप पर लोकप्रिय लंबी रचना “अर्ध सत्य को पूर्ण सत्य में बदलने हेतु इतिहास पुनः लिखना होग” सुनाकर सही इतिहास लिखकर मेवाड़ के सपूत के प्रति न्याय करने की पुरजोर मांग की। बालक मेहुल की बाल रचना और ढूँढाड़ी के इतिहास कला संस्था के संयोजक राकेश जैन की रचनाओं को सभी ने सराहा।
मुख्य अतिथि गोपिनाथ चर्चित ने श्लेष अलंकार, व्यंग्य रस और हास्य रस से सरोबार रचनाएँ प्रस्तुत की। अंत में अध्यक्ष लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाल ने गीत- “मंदिर, मस्जिद गिरिजाघर में, जिसे खोज कर हार गया। मन मंदिर के भीतर बैठा, खुद को खुद पर वार गया” और “आज जगत को पल-पल हमने, रंग बदलते देखा है। नहीं रही बन्धुत्व भावना, सत्य सहमते देखा है” सुनाई।
गोष्ठी का सफल संचालन समरस संस्थान की महासचिव डॉ निशा अग्रवाल द्वारा किया गया। अंत मे सभी उपस्थित कवियों के प्रति राजस्थानी काव्य के प्रभारी वैद्य भगवान सहाय पारीक ने धन्यवाद ज्ञापित किया।