एमपी के आदिवासी विभाग में जंगल राज, दैनिक वेतन भोगी कर्मी वेतन को मोहताज

मध्य प्रदेश के आदिवासी विकास विभाग के तहत आने वाले छात्रावासों एवं आश्रमों में रसोईया, चौकीदार, पानीवाला जैसे पदों पर कार्यरत दैनिक वेतन भोगी कर्मियों को पिछले लगभग चार महीने से वेतन प्रदान नहीं किया जा रहा है। वैसे ही इन कर्मियों को नियमितीकरण की प्रक्रिया पूर्ण नहीं होने के कारण इतना कम वेतन मिलता है कि परिवार का भरण पोषण करना भी कठिन हो जाता है।

मध्य प्रदेश तृतीय वर्ग शासकीय कर्मचारी संघ ने जारी विज्ञप्ति में बताया कि इस मंहगाई में इन कर्मियों को लगातार चार महीने से वेतन न मिलना उनके लिए बहुत बड़ी आर्थिक परेशानियां खडी कर देता है। किराना, दूध, सब्जी, बिजली का बिल, गैस सिलेन्डर, मकान किराया आदि का भुगतान करते हुए बढ़ती मंहगाई के बीच इनका जीवन गुजर बसर करना एक कठिन चुनौती बन रहा है। जिम्मेदारों से पूछने पर सीधा उत्तर दिया जाता है कि बंटन अप्राप्त है।

संघ ने कहा कि दैनिक वेतन भोगियों के साथ पूरे साल में वेतन का अनियमित होना कोई नई बात नहीं है पूर्व के कई वर्षों में भी शासन स्तर से बजट न होने के कारण इनको आर्थिक कठिनाइयों से रूबरू होना पड़ा है। परिवार के पोषण हेतु उन्हें कई बार सूदखोरों से भी पैसा ब्याज पर लेना पडता है और अपना एवं अपने परिवार का भरण पोषण करते करते यह लोग सूदखोरों के चंगुल में फंसकर बहुत सा पैसा ब्याज में दे देते हैं और इनकी आर्थिक स्थिति बद से बदतर हो जाती है।

संघ के योगेन्द्र दुबे, अर्वेन्द्र राजपूत, अवधेश तिवारी, नरेन्द्र दुबे, अटल उपाध्याय, मुकेश सिंह, आलोक अग्निहोत्री, मुन्ना लाल पटैल, आशुतोष तिवारी, बृजेश मिश्रा, डॉ संदीप नेमा, गोविन्द विल्थरे, रजनीश तिवारी, डी.डी. गुप्ता, तरूण पंचौली, मनीष चौबे, मो. तारिक, धीरेन्द्र सोनी, गणेश उपाध्याय, प्रणव साहू, महेश कोरी, विजय कोष्टी, सुदेश पाण्डे, मनीष लोहिया, मनोज सेन, विनय नामदेव, प्रियांशु शुक्ला, प्रशांत शुक्ला, आदि ने मंत्री आदिम जाति कल्याण विभाग से ईमेल भेजकर मांग की है कि अल्प वेतन भोगी कर्मचारियों को वेतन प्रत्येक माह समय पर मिल सके, इस समस्या का स्थाई समाधान किया जाये।