नई दिल्ली (हि.स.)। अजरबैजान की राजधानी बाकू में चल रहे कॉप29 जलवायु सम्मेलन में भारत ने शुक्रवार को दोहराया कि विकसित देशों को जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए 2030 तक हर साल कम से कम 1.3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर उपलब्ध कराने की जरूरत है।
शुक्रवार को कॉप29 में अपने संबोधन में केन्द्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव नरेश पाल गंगवार और कॉप29 में भारत के प्रमुख वार्ताकार ने कहा कि चरम मौसम की घटनाएं इतनी ज्यादा हो रही हैं कि इसका असर विशेष रूप से ग्लोबल साउथ के लोगों पर पड़ रहा है। इसलिए जलवायु कार्रवाई पर महत्वाकांक्षाओं को बढ़ाने की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा, “हम जलवायु परिवर्तन के खिलाफ अपनी लड़ाई में एक महत्वपूर्ण मोड़ पर हैं। हम यहां जो निर्णय लेंगे, वह हम सभी को, विशेष रूप से ग्लोबल साउथ के लोगों को, न केवल महत्वाकांक्षी जलवायु परिवर्तन न्यूनीकरण कार्रवाई करने में सक्षम बनाएगा बल्कि जलवायु परिवर्तन के अनुकूल भी बनाएगा। इस संदर्भ में यह कॉप29 ऐतिहासिक है।”
उन्होंने कहा कि ऐतिहासिक जिम्मेदारियों और क्षमताओं में अंतर को पहचानते हुए यूएनएफसीसीसी और इसके पेरिस समझौते में जलवायु परिवर्तन के लिए वैश्विक प्रतिक्रिया की परिकल्पना की गई है, जिसमें समानता और साझा सिद्धांतों का पालन किया गया है। विशेष रूप से ग्लोबल साउथ में विभिन्न राष्ट्रीय परिस्थितियों, सतत विकास लक्ष्यों और गरीबी उन्मूलन को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए।
हस्तक्षेप में विकसित देशों को ध्यान दिलाया गया कि वे 2020 तक संयुक्त रूप से प्रति वर्ष 100 बिलियन डॉलर जुटाने के लिए प्रतिबद्ध हैं, जिसकी समय सीमा 2025 तक बढ़ा दी गई है। वैसे 100 बिलियन डॉलर का लक्ष्य विकासशील देशों की वास्तविक आवश्यकताओं की तुलना में पहले से ही अपर्याप्त है। जुटाई गई वास्तविक राशि और भी कम उत्साहजनक रही है। 100 बिलियन डॉलर की प्रतिबद्धता 15 साल पहले यानी 2009 में की गई थी। बयान में कहा गया है कि जलवायु वित्त के मामले में भी ऐसी ही ज़रूरत है। हमें पूरी उम्मीद है कि विकसित देश बढ़ी हुई महत्वाकांक्षाओं को सक्षम करने और इस कॉप29 को सफल बनाने की अपनी ज़िम्मेदारी को समझेंगे।