बाल कहानी- सुंदर अभियान, एक पेड़ माँ के नाम: सुजाता प्रसाद

सुजाता प्रसाद
स्वतंत्रत रचनाकार
शिक्षिका सनराइज एकेडमी
नई दिल्ली, भारत

गर्मियों की छुट्टी में घूमना फिरना, दोस्तों, रिश्तेदारों से मिलना जुलना और साथ में शॉपिंग करने का अपना एक अलग ही आनंद होता है। इन दिनों बच्चों की मनमानी और उनकी मौजूदगी से घर की शोभा कुछ अलग ही रहती है। खास खरीदारी के साथ मंजू आज बाजार से अचार डालने के लिए कच्चे हरे आम भी लेकर आई थी। साथ में मीठे रसीले आम भी। मैंगो शेक के लिए आम के पल्प निकालने के बाद उसकी गुठली को अच्छी तरह धोकर सूखने के लिए भी रख दिया था मंजू ने। डांस क्लास से आने वाली होगी कृतिका, समर कैंप में गई अपनी बिटिया के बारे में यही सोच रही थी मंजू, तभी दरवाजे की घंटी बजी। 

मंजू ने मुस्कुराते हुए कहा चलो फ्रेश हो लो बेटा। 

ठीक है मम्मी कहते हुए कृतिका वॉशरूम की तरफ बढ़ गई। 

मंजू ने कृतिका के लिए मैंगो शेक टेबल पर रख दिया था। कृतिका ने खुश होकर कहा माइ फेवरेट शेक, थैंक्यू मम्मी! यमी, शेक पीते हुए कृतिका ने कहा। फिर उसने पूछा, प्लेट में गुठली किस काम के लिए रखा है आपने। 

तुम्हारे लिए क्योंकि तुमने कुछ दिन पहले मुझसे पूछा था कि आम के बीज कैसे होते हैं? ये गुठली ही इसके बीज होते हैं। इस गुठली के अंदर ही बीज होते हैं। जब ये गुठली जमीन के नीचे मिट्टी खोदकर डाल दिए जाते हैं और ऊपर से मिट्टी डाल दी जाती है, तो कुछ समय बाद जमीन की नमी और सूर्य के ताप से ये अंकुरित होने के बाद धीरे-धीरे पौधे में परिवर्तित हो जाते हैं। कुछ दिन में पौधा तैयार हो जाता है। 

वाह काश यह सारी प्रक्रिया मैं भी देख पाती तो कितना अच्छा होता। मम्मा प्लीज़ मुझे भी बीज से पौधा बनते देखना है। यूट्यूब से नहीं असली में।

बेटा यह टाइम टेकेन प्रॉसेस है। हम तो शहर में हैं, गांव में रहते तो बारिश के मौसम में ऐसे ही देखने को मिल जाता तुम्हें। 

कैसे मुझे भी बताओ ना, कृतिका ने पूछा। 

कृतिका के जिज्ञासु मन को शांत करने के लिए मंजू ने कहा, आम खाने के बाद घर के पीछे खाली जगह में या सड़क किनारे जो गुठली और बीज फेंक दिए जाते हैं उनमें से कुछ उस जगह पर जमीन में दब जाते हैं और जब वर्षा आती है तो अनूकूल परिस्थिति पाकर वे अंकुरित हो जाते हैं। सिर्फ आम ही नहीं जामुन, नीम, नींबू, अमरुद आदि के बीज भी पौधे बन के उग आते हैं। गांव में तो हर बच्चे के लिए यह प्राकृतिक प्रयोगशाला उपलब्ध है, और बच्चे प्रायोगिक रुप से स्वयं ही समझ जाते हैं। 

मम्मा आपने इतने अच्छे तरीके से समझाया है, मुझे सारी प्रक्रिया समझ में आ गई। चलो ना अगली बार की छुट्टी गांव में मनाएंगे। 

मंजू ने कृतिका की बाल सुलभ बातों को सुनकर मुस्कुराते हुए अपना आश्वासन दिया। मंजू ने कृतिका से कहा दादाजी के लिए मैंगो शेक तैयार है, उन्हें भी देकर आओ बेटा। 

ओके मम्मी। दादा जी के पास से आने के बाद कृतिका फिर गांव जाने की ज़िद करने लगी। 

मंजू ने कहा, ठीक है गर्मी की छुट्टी में हम गांव जरुर चलेंगे। जाओ दादा जी से बात कर लो। लेकिन मेरी बच्ची जब मॉनसून आएगा तब तक तो स्कूल खुल जाने की वजह से वापस यहां आना पड़ेगा। 

अरे हां, तब तो मैं लाइव बीज से पौधा बनते नहीं ही देख पाऊंगी। मम्मा मुझे तो देखना है, पर कैसे? आप ही कुछ करो ना। 

मंजू ने कहा, ओके चलो इन्हीं गुठलियों पर प्रयोग करते हैं। 

यस मम्मी, कृतिका ने खुश होते हुए कहा।

बातचीत करती हुई मंजू ने कृतिका से कहा, ऑफिस की तरफ से वन महोत्सव का कार्यक्रम “एक अभियानः एक पौधा माँ के नाम” आयोजित किया जा रहा है। अगले हफ्ते किसी एक दिन इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए तुम्हें भी अपने साथ ले चलूंगी। 

खुशी जाहिर करते हुए कृतिका ने कहा और वहां मैं माँ के नाम एक पौधा लगाऊंगी, जैसा कि देश में प्रधानमंत्री के आह्वान पर वृक्ष संवर्धन अभियान चलाया जा रहा है “एक पेड़ माँ के नाम”। जिसकी शुरुआत उन्होंने विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर की थी। 

बेटी को प्रोत्साहित करते हुए मंजू ने कहा अरे वाह। चलो वहां तुम्हें विविध प्रकार के पौधे भी देखने को मिल जाएंगे। 

प्यार से लिपटते हुए कृतिका ने कहा, मम्मी पौधारोपण के बाद बीच-बीच में उसकी देखरेख के लिए भी वीजिट करुंगी। 

जरुर बेटा, मंजू ने हामी भरते हुए कहा। इसके बिना तो पौधे का संरक्षण अधूरा ही रहेगा।

अच्छा सुनो, कृतिका का ध्यान खींचते हुए मंजू ने उससे कहा, छत पर मैंने एक गमला तैयार कर रखा है, चलो आओ प्लेट में जो आम के बीज रखें हैं, उन्हें तुम अपने हाथ से गमले की मिट्टी में डालना। 

चहकती हुई कृतिका ने कहा ठीक है मम्मा, मैं अभी लेकर आई। गमले में बीज लगाने के बाद कृतिका रोज गमले को देखने जाती, जरूरत के हिसाब से सिंचाई करती और बीज से पत्ते निकलने का इंतजार करती रहती। 

अब तक बारिश का मौसम भी आ चुका था। एक दिन शाम में टहलते हुए कृतिका को दो छोटे छोटे पत्ते दिखाई पड़े, जो गमले से झांक रहे थे। वह खुशी से झूम उठी। कुछ दिन बीतने के साथ आम का बीज आम के पौधे में बदल गया था। 

बीज से पौधे के विकसित होने की प्रक्रिया में कृतिका का सहभागी होना मंजू के लिए भी खुशी की बात थी, क्योंकि प्रायोगिक रूप से किया गया कोई भी काम मस्तिष्क पर अपनी अमिट छाप छोड़ता है।

पौधे को बढ़ता देख कृतिका ने मंजू से पूछा, मम्मी आम के तो पेड़ होते हैं ना, तो इनका विकास गमले में कैसे हो पाएगा। 

मंजू ने कहा इनमें से एक पौधे का हम बोनसाई बनाएंगे और बाकी पौधों की प्लांटिंग बड़े वाले पार्क में कर आएंगे। 

अरे वाह! नाइस आइडिया, मॉम यू आर ग्रेट! 

कृतिका की खुशी उसके चेहरे से झलक रही थी और मंजू अपनी प्यारी बिटिया पर अपना स्नेह बरसा रही थी।