दुआओं की कोई जात नहीं होती: रूची शाही

रूची शाही

महज़ कुछ अंगों के होने न होने से
खूबसूरती का क्या ताल्लुक
मैंने देखा उसे बड़े ग़ौर से
बड़ी बड़ी आंखें, घनेरी पलकें
आंखों के किनारों पे क़रीने से लगे काजल
कत्थई लिपस्टिक, मैचिंग ड्रेस
माथे पे छोटी गोल बिंदी
रंग न गोरा न गेहुआ
सुन्दरता इतनी की निहारती रही मैं उसको

गाड़ी के शीशे के सामने आकर खड़ी हो गई
मैं मुस्कुराती हुई देख रही थी उसको
मुझे ऐसे ताकते देखकर लजाई सी वो
जैसे कहना चाह रही हो
हाँ पता है मुझे बहुत सुंदर हूँ मैं
पर मेरी सुन्दरता किसी काम की
जब समाज मुझे बहन बेटी बहु के रूप में
मुझे स्वीकार नही सकता
मेरा असभ्य और अशिष्ट होना भी तो
इसी समाज की देन है

उसने इशारे से शीशा नीचे करने को कहा
और पैसे लेकर मेरे माथे पे हाथ रख दी
उसकी पांचों उंगलियों की छुअन
और हथेली की गरमाहट महसूस करके
लगा जैसे ये कुछ अलग सा आशीर्वाद है
मोटी मोटी अँखियों वाली
जा तेरा सुहाग बना रहे…

लगा जैसे वो बोली है या
मेरे शिव ने आकर रख दिया मेरे सिर पे हाथ
किन्नरों से दुआएँ सबको चाहिए
क्योंकि दुआएँ तो बस दुआएँ होती हैं
दुआओं की कोई जात नहीं होती..