कोई गुनाह नहीं: वंदना मिश्रा

वंदना मिश्रा

कोई गुनाह नहीं किया
तुमने कि
छुप जाओ किवाड़ों की ओट में

कि निराश लौटे पिता को और
मत थका बच्ची

कि तेरे प्यार से
पानी पकड़ाने से
धुल जाएगी उनकी उदासी

एक प्याला गर्म चाय का
रख उनके सामने
और प्यार से पकड़
उनका हाथ
समझा उन्हें कि
तो क्या हुआ
जो नहीं तय कर पाए विवाह
बोल कि यूँ ही भटका न करो
इस उस के कहने पर
लड़के खोजने

कि इतनी क्या जल्दी है
मुझे घर से निकालने की
हल्के से छुओ
उनके मुरझाए चेहरे को
और बताओ
कि कितने तो सुकून से भरी रहती हो
उनके साथ
पूछो थोड़ा रुठ कर कि
यूँ कौन तड़पता है
अपने दिल के टुकड़े को
दिल से दूर करने के लिए

मुस्कुराओ
कि पिता के पास हो तुम
मुस्कुराओ
कि तुम्हीं
ला सकती हो मुस्कुराहट
पिता के चेहरे पर