Sunday, September 8, 2024
Homeकाव्यचंचल मन: डॉ निशा अग्रवाल

चंचल मन: डॉ निशा अग्रवाल

डॉ निशा अग्रवाल
जयपुर, राजस्थान

चंचल मन, चितवन भी चंचल
रोके ना ये रुकता है
जैसे चले पवन का झोका
हाथ कान पे रुकता है

पल में डोले धरती ,बगिया
पल में गगन में उड़ता है
उड़ा फिरे मन मस्त गगन में
सपनों की दुनियां बनता है

कभी हंसाकर, कभी रुलाकर
मजबूत ये मन को करता है
कभी हो जाता रक्त तप्त तो
कभी मोम सा पिघलता है

क्रोधी मन रिश्तों को तोड़े
कोमल मन ये जोड़ता है
शीतलता के तर में जन जन
हल मुश्किल का खोजता है

जो कर लेता मन को वश में
कार्य सिद्ध कर पाता है
वाणी का संयम ही जग में
सफल मुकाम को लाता है

संबंधित समाचार

लोकप्रिय

ताजा खबर