तेरा ज़िक्र: नंदिता तनुजा

नंदिता तनुजा

कुछ बातों का ज़िक्र सरेआम कर दिया
दिल ने तुझे चाहा तेरे नाम कर दिया

वो एक लम्हा नजरों की गुस्ताखी रही
आँखों ने देखते ही कत्लेआम कर दिया

सांसों की तमाम गिरह खुलती रही
धड़कनों को सुन सुबह-शाम कर दिया

नसीब से मिल वक़्त में खोया सब सही
महफ़िल ने तेरे दर्द को तमाम कर दिया

नंदिता ‘इश्क़’ को इश्क़ कह जीती रही
दिल को तेरे होने ने बदनाम कर दिया