एक इंतज़ार स्टेशन पर
जानते हुए कि
कोई आने वाला नहीं है
रोज़ टूटती हैं उम्मीदें
स्टॉल पर पन्ने फड़फड़ाते हैं
किसी पन्ने में दर्ज़ होगा
इंतज़ार नाम का कोई शब्द
सिहर उठता होगा वह भी
धड़कनें तेज़ होती होंगी उसकी भी
हर दूसरे ट्रेन के आते ही
उम्मीदें टूटती होंगी उसकी भी
अंदर ही अंदर भीग जाता होगा
उसका मन
वक़्त चलता रहता है
ट्रैन की गति के मुकाबले
कभी आगे
कभी पीछे
कभी एकदम ठहरा हुआ- सा
विश्वास का रंग शायद बैंजनी है
हर सुबह सूरज के उगते ही
नई ऊर्जा के साथ
करता है इंतज़ार नए सिरे से
भूल जाता है बीते कल उम्मीदों का टूटना
-जयश्री दोरा