क्यों ज़रूरी है
ज़ुल्फ़ों का रेशमी होना,
रंग उजला और काया छरहरी होना?
क्यों दहल जाती है माँ,
बिटिया की सांवली रंगत देख,
और जुट जाती है
‘मिशन गोरा’ पर?
बेसन, मलाई, हल्दी और जाने क्या क्या…
और वो गोरेपन की क्रीम भी,
जो ताल ठोक के दावे करती है,
अबला को सबला बनाने की
इक जंग सी छिड़ी हुई है
दिखने दिखाने की
नख से शिख तक
बस सुंदरता पाने की
किसने कर दिया ये सब इतना ज़रूरी?
इसके बिना नारी नहीं है क्या पूरी?
देखो, कहीं हो तो नहीं रहे हम भ्रमित?
कहीं खो तो नहीं रहे
लक्ष्य वास्तविक?
शायद आ रहे हैं हम
एक सुनियोजित चाल में
फंस रहे हैं एक
विशाल अदृश्य जाल में
पहले थे डरे, सहमे, शोषित
आज स्वयं किये जा रहे हैं
क्यों खुद को भोग्या घोषित?
चलो अब जागें,
आँखें खोलें और लक्ष्य साधें।
क्योंकि,अभी चार ही कदम तो चले हैं
और बाकी हज़ारों काम पड़े हैं।
-पूनम प्रकाश