कतरा-कतरा धूप बटोरा करता था जो राहों से,
आज उसी ने अपने दम पर अपना सूरज उगा लिया
जीवन की धारा कब किसकी आशा के अनुकूल रही
कभी शूल सी चुभी सफ़र में कभी खुशी का फूल रही
आँसू या मुस्कान लिये बैठा है हर पल जीवन का
लेकिन किसे सहेजे यह तो चयन रहा हरदम मन का
गम की सीपी ने आँसू की जिन बूँदो को पी डाला,
वक्त लगा पर हर आँसू को उसने मोती बना लिया
तानों से या तारीफों से जो विचलित हो जाता है
मंजिल का क्या कहना उसका रस्ता भी खो जाता है
अर्जुन सी जिसको भी चिड़िया की पुतली ही दिखती है
दुनिया ऐसे कर्मवीर को याद हमेशा रखती है
अँधियारी रातों में जिसने उम्मीदों का दीप जला,
घनी अमावस को भी बिलकुल दीवाली सा मना लिया
-शीतल वाजपेयी