सुहागिन महिलाओं द्वारा पति की दीर्घायु और स्वास्थ्य कामना के लिए किया जाने वाला करवा चौथ का व्रत इस वर्ष विशेष फलदायी है। कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष चतुर्थी को मनाया जाने वाला करवा चौथ का व्रत कल 17 अक्तूबर को है। इस दिन महिलाएं पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखकर चांद को अर्घ्य प्रदान करती हैं।
करवा चौथ पर 70 साल बाद इस बार विशेष शुभ संयोग बन रहा है। इस बार रोहिणी नक्षत्र के साथ मंगल का योग इसे विशेष शुभ और मंगलकारी बना रहा है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार रोहिणी नक्षत्र और चंद्रमा में रोहिणी का योग होने से मार्कण्डेय और सत्याभामा योग इस करवा चौथ पर बन रहा है। पहली बार करवा चौथ का व्रत रखने वाली महिलाओं के लिए ये व्रत बहुत ही शुभ फलदायक है।
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार अनेक वर्षों के बाद करवाचौथ पर बन रहे विशेष संयोग से व्रती महिलाओं को विशेष फल मिलेगा। पूजा का शुभ मुहूर्त 17 अक्टूबर को शाम 5:46 से 7:02 बजे तक, चंद्रोदय 8:20 बजे, चतुर्थी तिथि आरंभ 17 अक्टूबर सुबह 6:48 से 18 अक्टूबर सुबह 7:28 बजे तक रहेगी। वहीं व्रत का समय सुबह 6:21 से रात 8:18 बजे तक रहेगा, जिसकी अवधि 13 घंटे 56 मिनट रहेगी।
शास्त्रों के अनुसार यह व्रत कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चन्द्रोदय व्यापिनी चतुर्थी के दिन करना चाहिए। पति की दीर्घायु एवं अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए इस दिन भालचन्द्र गणेश की अर्चना की जाती है। करवा चौथ में भी संकष्टी गणेश चतुर्थी की तरह दिन भर उपवास रखकर रात में चन्द्रमा को अर्घ्य देने के उपरांत ही भोजन करने का विधान है। इस दिन भगवान शिव-पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, गणेश एवं चंद्रमा का पूजन करें। पूजन करने के लिए बालू अथवा सफेद मिट्टी की वेदी बनाकर उपरोक्त वर्णित सभी देवों को स्थापित करें। शुद्ध घी में आटे को सेंककर उसमें शक्कर अथवा खांड मिलाकर मोदक (लड्डू) नैवेद्य हेतु बनाएँ। काली मिट्टी में शक्कर की चासनी मिलाकर उस मिट्टी से तैयार किए गए मिट्टी के करवे अथवा तांबे के बने हुए करवे। 10 अथवा 13 करवे अपनी सामर्थ्य अनुसार रखें। इस व्रत की विशेषता यह है कि केवल सौभाग्यवती स्त्रियों, किसी भी आयु, जाति, वर्ण, संप्रदाय की हो, सबको इस व्रत को करने का अधिकार है। जो सौभाग्यवती (सुहागिन) स्त्रियाँ अपने पति की आयु, स्वास्थ्य व सौभाग्य की कामना करती हैं वे यह व्रत रखती हैं। बालू अथवा सफेद मिट्टी की वेदी पर शिव-पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, गणेश एवं चंद्रमा की स्थापना करें। मूर्ति के अभाव में सुपारी पर धागा बाँधकर देवता की भावना करके स्थापित करें। पश्चात यथाशक्ति देवों का पूजन करें। वर्तमान समय में करवा चौथ व्रतोत्सव ज्यादातर महिलाएं अपने परिवार में प्रचलित प्रथा के अनुसार ही मनाती हैं, लेकिन अधिकतर स्त्रियां निराहार रहकर चन्द्रोदय की प्रतीक्षा करती हैं।
करवा चौथ व्रत विधि-
करवा चौथ के दिन महिलाएं सूर्योदय से पहले जागकर सरगी खाकर व्रत की शुरुआत करती हैं। इस व्रत में सरगी का विशेष महत्व होता है। सरगी में मिठाई, फल और मेवे होते हैं, जो उनकी सास उन्हें देती हैं। उसके बाद महिलाएं पूरे दिन निर्जला व्रत रखती हैं। उसके बाद शाम को छलनी से चांद देखकर और पति की आरती उतारकर अपना व्रत खोलती हैं। अधिकांश घरों में पति अपनी पत्नी को पानी पिलाकर उनका व्रत तूड़वाते हैं।