नहीं करती हूँ क़ोशिश मैं किसी को भी हराने की
तमन्ना है अजीज़ों के दिलों को जीत जाने की
मुझे मालूम है तुम सारी कसमें भूल जाते हो,
चलो खाओ कसम तुम आज हमको भूल जाने की
चलो अच्छा हुआ तुमने हमें गैरों में गिन डाला,
ज़रूरत क्या हमें अब कोई भी वादा निभाने की
मिली कुर्सी तो खुश वो इस कदर होने लगे देखो,
कि जैसे मिल गई चाबी पुराने इक खजाने की
लगा बहने तुम्हारी आँख से लो देखो इक दरिया
तुम्हीं ने तो करी थी ज़िद हमें अपनी सुनाने की
सिवा मेरे वो सारे गाँव के खेतों में बरसे हैं,
थी साजिश बादलों की मेरी ही फसलें सुखाने की
बड़े बेचैन से बैठे हैं दोनो मान जाने को,
पहल लेकिन करे अब कौन दूजे को मनाने की
उसे मालूम है मिट जाएगा नामो निशां उसका,
न जाने क्यों नदी की ज़िद है सागर में समाने की
बड़ी मुद्दत से बैठा हूँ तेरी दहलीज पे मालिक,
न जाने कब तू सोचेगा मेरी बिगड़ी बनाने की
-पूनम प्रकाश