देश के उच्चतम न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए कहा है कि अगर पीड़ित, आरोपी को बचाने के लिए बाद में अपना बयान पलट देता है या उससे समझौता कर लेता है तो उस पर भी मुकदमा चलाया जा सकता है। उच्चतम न्यायालय ने 14 साल पुराने एक मामले की सुनवाई करते हुए स्पष्ट किया है कि अगर किसी मामले में रेप पीड़िता आरोपी को बचाने के लिए उससे समझौता करती है और अपना बयान बदलती है तो उसके खिलाफ भी मुकदमा चालाया जाएगा। जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस नवीन सिन्हा और जस्टिस केएम जोसेफ की बेंच ने एक मामले की सुनवाई करते हुए दोषी को 10 साल की सजा सुनाई। जबकि इस मामले में रेप पीड़िता ने अपना बयान बदला था। उसने कहा था कि उसके साथ रेप नहीं हुआ था। बेंच ने सुनवाई के दौरान कहा कि अगर रेप के आरोपी को मेडिकल रिपोर्ट के अलावा किसी भी आधार पर क्लीन चिट दे दी जाती है, तब भी उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज होगा।
उच्चतम न्यायालय ने इस दौरान सख्त लहजे में कहा कि आरोपी या पीड़ित किसी को भी कोर्ट में चल रहे क्रिमिनल ट्रायल को पलटने का हक नहीं है, साथ ही इसे कोर्ट में मजाक का विषय ना बनाया जाए। किसी को भी ये अनुमति नहीं है कि वह अपनी मर्जी से कभी भी अपने बयानों से मुकर जाए और न्याय व्यवस्था का मजाक बनाए। हालांकि गुजरात हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के इस फैसले पर संज्ञान लेते हुए मेडिकल रिपोर्ट और अन्य सबूतों के आधार पर आरोपी को दोषी ठहरा दिया था। दोषी ठहराए जाने के बाद जब आरोपी ने उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। जिस वक्त पीड़िता के साथ रेप हुआ वह 9 साल की थी। उसकी मां ने एफआईआर दर्ज करवाई थी। पीड़िता की मेडिकल रिपोर्ट के बाद आरोपी को गिरफ्तार किया गया। लेकिन मात्र 6 महीने बाद ही पीड़िता और मामले की मुख्य गवाह उसकी बहन ने बयान पलट दिया और कहा कि पीड़िता को गिरने के कारण चोट लगी थी। जिसके बाद ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को बरी कर दिया। हालांकि, गुजरात हाईकोर्ट ने इस फैसले को पलट दिया और रेप पीड़िता की मेडिकल रिपोर्ट और अन्य सबूतों के आधार पर आरोपी को दोषी करार दिया गया। जिसके बाद आरोपी ने उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, लेकिन उसकी याचिका खारिज हो गई। बाद में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि पीड़िता का परिवार गरीब था और वह 5-6 भाई बहन हैं। उसने रेप के 6 महीने बाद ही बयान पलट दिया तो ऐसे में हो सकता है कि पीड़िता को बयान बदलने के लिए मजबूर किया गया हो।