सनातन धमज़् में बसंत पंचमी का अपना महत्व है, ऐसा कहा जाता है कि बसंत पंचमी के आते ही ऋतु परिवर्तन होने लगता है। इसमें जहां ठंडक कम होने लगती है वहीं ग्रीष्म ऋतु की आगमन शुरू हो जाता है। बसंत पंचमी के मौके पर वीणा वादिनी सरस्वती का पूजन अर्चन होता है। इस दिन संगीत और अध्यापन आदि कार्य का शुभारंभ करने वाले माँ सरस्वती को नमन करते हैं और अपने कार्य का शुभारंभ करते हैं।
बसंत पंचमी के अवसर पर मंदिरों के अलावा ही शैक्षणिक संस्थाओं में विविध आयोजन किये जाते हैं। शास्त्रों की मान्यता है कि वीणा वादिनी के माध्यम से ही संगीत की शिक्षा प्राप्त की जाती है, संगीत के साथ ही शिक्षा की अग्रणी देवी माँ सरस्वती को माना जाता है। हिन्दू धर्म में तीन प्रमुख देवियों में माँ सरस्वती भी शामिल हैं। इन्हें बुद्धि एवं विवेक की देवी भी माना जाता है। इस लिहाज से बसंत पंचमी का आध्यात्मिक महत्व माना गया है।
माँ सरस्वती के मंत्र-
सरस्वती स्त्रोत्र
सरस्वति महाभागे विद्ये कमललोचने ।
विद्यारुपे विशालाक्षि विद्यां देहि नमोह्यस्तु ते ।।
यदक्षरं पदं भ्रष्टं मात्राहीनं च यद्भवेत ।
तत्सर्वं क्षम्यतां देवि प्रसीद परमेश्वरि ।।
कला, साहित्य और सर्वमंगल के लिए
शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमां आद्यां जगद्व्यापिणीम्
वीणा पुस्तक धारिणीं अभयदां जाड्यान्धकारापाहाम्
हस्ते स्फाटिक मालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धि प्रदां शारदाम्
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकर: प्रभृतिभिर्देवै: सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती नि:शेषजाड्यापहा ।।
भय निवारण हेतु
ऐं ह्रीं श्रीं वीणा पुस्तक धारिणीम् मम् भय निवारय निवारय अभयम् देहि देहि स्वाहा।
स्मरण शक्ति बढाने के लिए मंत्र
नम: भगवति वद वद वाग्देवि स्वाहा
बुद्धिमत्ता के लिए
शारदा शारदाभौम्वदना। वदनाम्बुजे।
सर्वदा सर्वदास्माकमं सन्निधिमं सन्निधिमं क्रिया तू।
श्रीं ह्रीं सरस्वत्यै स्वाहा।
ऊं ह्रीं ऐं ह्रीं सरस्वत्यै नम:।