श्वेते वृषे समारुढा श्वेताम्बरधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा।।
शारदेय नवरात्र की महाअष्टमी को माँ महागौरी की आराधना-उपासना का विधान है। माँ की शक्ति अमोघ और सद्यः फलदायिनी है। माँ की उपासना से भक्तों को सभी क्लेश धुल जाते हैं, पूर्वसंचित पाप भी नष्ट हो जाते हैं। भविष्य में पाप-संताप, दैन्य-दुःख उसके पास कभी नहीं जाते। वह सभी प्रकार से पवित्र और अक्षय पुण्यों का अधिकारी हो जाता है। माँ महागौरी की चार भुजाएँ हैं। इनका वाहन वृषभ है। इनके ऊपर के दाहिने हाथ में अभय मुद्रा और नीचे वाले दाहिने हाथ में त्रिशूल है। ऊपरवाले बाएँ हाथ में डमरू और नीचे के बाएँ हाथ में वर-मुद्रा हैं। इनकी मुद्रा अत्यंत शांत है।
माँ महागौरी का ध्यान, स्मरण, पूजन, आराधना भक्तों के लिए कल्याणकारी है। इनकी कृपा से अलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति होती है। माँ महागौरी भक्तों का कष्ट अवश्य ही दूर करती हैं। इनकी उपासना से आर्तजनों के असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं। पुराणों में माँ महागौरी की महिमा को अपरम्पार बताया गया है। माँ मनुष्य की वृत्तियों को सत् की ओर प्रेरित करके असत् का विनाश करती हैं।
या देवी सर्वभूतेषु माँ गौरी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।