पर्यावरण में हो रहे बदलाव से कौवो की संख्या में अभूतपूर्व गिरावट सम्बंधित शोध पत्र के प्रकाशन के साथ ही राजनेताओ की संख्या में दिनोंदिन बढोत्तरी का समाचार प्रकाशित हुआ, तो मुझे लगा कि दोनों के बीच कुछ न कुछ अनुपातिक रिश्ता जरूर है।
कौवे की सामाजिक जिम्मेदारियों के बारे में मुझे बचपन में बताया गया था कि घर आने वाले मेहमान की पूर्व सुचना देने में कौवे को महारत हासिल होती है। वो छत पर बैठे-बैठे मधुर सुर से हमें आगाह किया करते हैं कि मुसीबत का घर में प्रवेश संभवित है।
लेकिन आज कल कौवे अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों से भटक गए है, या फिर सोशल मीडिया ने इतना बिजी कर दिया है। ये भी सम्भव कि वे जानबूझकर काम नहीं करना चाहते हों। बहरहाल, सदियों से हमारे और कौवो के बीच कायम इस अंजान रिश्ते से हम पीछे नहीं हट सकते।
इनकी आबादी बढ़ाने के बारे में हमे कुछ सकारात्मक कदम उठाने चाहिए। इस बनस्बत नेताओ की बढ़ती आबादी से कुछ फॉर्मूले की गुंजाइश के मद्देनजर प्रयोगात्मक सोच के साथ मैंने काम शुरू किया।
दोनों के आहार के सम्बन्ध में जुटायी जानकारियो से मेरा यकीन अब और मजबूत हो गया। दोनों सर्वाहारी जीव है। अध्ययन के अगले चरण में मेरा ध्यान डार्विन के एक सिद्धान्त पर आ कर रुक गया। जिसके अनुसार एक सा आहार खाने वाले समान प्रजाति के जीवों के मध्य संघर्ष में सर्वाइवल ऑफ़ फिटेस्ट की थ्योरी काम आती है।
इसके अनुसार दोनों में से किसी एक का ही जीवन पृथ्वी पर बचेगा। लिहाजा मेरी चिंताएं बढ़ गई, कि अगर नेताओ की आबादी न रोकी गई तो कौवे की प्रजाति पर संकट उत्पन्न हो जाएगा।
इस आशंका से ग्रस्त होकर मैंने अपना ध्यान दोनों की समानताओं के तुलनात्मक अध्ययन पर केंद्रित करना शुरू किया। खतरों की पूर्व सूचना देने को लेकर कौवे जिस जिम्मेदारी से काँव-काँव कर हमें आगाह करते आ रहे है, उसी प्रकार समाज में मंडराते संकट पर संसद में नेता चिल्लाते हैं।
एक और समानता की ओर मेरा ध्यान बरबस ही खिंचता चला गया। (हालांकि इस राय से मैं इत्तेफाक नही रखता) की श्राद्ध पक्ष में कौवे के भीतर हमारे पूर्वजों की आत्माये आ बसती है और नेताओं के संबोधन में महान आत्मा शब्द के जुड़ाव को देखते हुए नेता में प्रेत निवास की संभावना से इंकार नही किया जा सकता।
सारे पक्ष का बिंदुवार अध्ययन करने से इस निष्कर्ष पर पहुँचना संभव हो पाया कि समाज के लिए, हमे जितनी जरूरत नेताओ की है, कौवो की नहीं। इन वैज्ञानिक निचोड़ और तथ्यों से धीरे धीरे मेरी सहानुभूति से कौवे दूर होते चले गए।
-संजीव पांडेय