मैं इसलिए औरत नहीं हूँ
कि मेरी माँग में
तुम्हारे नाम का सिंदूर है
और माथे पे बिंदिया।
मैं इसलिए औरत नहीं हूँ
कि तुम्हारे शर्ट की टूटी हुई
बटन टांक सकूं
या तुम्हारे जूते के शू लैशेज बांध सकूँ
धोती रहूँ तुम्हारे गंदे कपड़े
और खाना परोसने के बाद
पानी देने के लिए भी दौडूं
मैं इसलिए औरत नहीं हूँ
कि पकाती रहूँ
तुम्हारी पसंद का खाना
और सोचूँ
कि पति के दिल का रास्ता
उसके पेट से गुजरता है।
क्यों तुम्हें याद है क्या
की मेरे दिल का रास्ता
कहाँ से गुजरता है।
तुम्हारी तरह पेट या पीठ से नहीं
थोड़ा सा प्यार
थोड़ा सी परवाह
मान सम्मान से है।
मैं औरत हूँ
क्योंकि प्रकृति ने बनाया मुझे
रचा है मेरे अस्तित्व को मेरे लिए
तुम्हें खुश करने के लिए नहीं।
मैं औरत हूँ
क्योंकि मेरे अपने कुछ ख़्वाब हैं
मेरी अपनी कुछ इच्छाएं हैं
कुछ अपनी ख्वाहिशें हैं
कुछ अपनी आशाएँ हैं।
मैं खुद की औरत हूँ
मेरा कोई परमेश्वर नहीं
बंदिशें मुझे स्वीकार नहीं
मैं आजाद हूँ उन्मुक्त हूँ
हाँ मैं औरत हूँ।
-रुचि शाही