मैं स्त्री कोई प्रवेश द्वार नहीं
जो कोई भी हूर्ण आक्रमणकारी
मेरी फाटक खुली समझकर
जब चाहे प्रवेश कर जाये!
मैं जीती जागती हँसती बोलती
खेलती-कूदती, खाती-पाती
एक जीवंत जीवा हूँ!
मैं धरा का कोई टूकड़ा नहीं
जो कोई भी युद्ध में जीत ले
मैं स्त्री भी एक इन्सान हूँ
कोई वस्तु नहीं,जो कोई
खरीद कर सजा लें!
मैं पंचाली नहीं जिसे
पांडव जुए में दाव लगाए जाए
एक पुरूष की धर्मपत्नी हूँ
किसी माँ की लाडली हूँ
किसी बाबुल की दुलारी हूँ
किसी भैया की प्यारी हूँ
किसी बहन की सखी हूँ!
मुझमें प्रवेश की इच्छा रखने वाला
पुरूष क्यों भूल जाता है कि
उसके जन्म का द्वार भी यही है!
फिथ क्यों मेरी देह की भूख मिटाकर
कभी राॅड तो कभी बोतल
तो कभी बांस
तो कभी तेज धार हथियार से
मेरे अंदूरूनी अंगो को भेदकर
मेरी आत्मा तक को छल्ली कर देता है
तुम्हारा जन्म तो एक पिता से हुआ
पर मैं अपनी संतान के पिता का नाम
सही बताने में असमर्थ हूँ
उनमें से कौन था!
पाना है तो मेरा प्रेम पाओ
मेरा विश्वास पाओ
मेरी ममता पाओ
ये क्या तुम अपने छल,बल और शक्ति का भय दिखाकर
तुम मुझपर विजय पाते हो
जैसे रावण और दुष्शासन ने किया था
रावण की लंका जलकर खांक हुई
और दुष्शासन का कौरव वंश
अब तुम्हारी बारी है
बचा सकते हो मुझसे खुद को बचा लो
देख लो एकबार मुझे जिंदा तो छोड़ो
फिर देखो मैं तुम्हारक आँखे कैसे नौंचती
और तुमहें कैसे नपुंसक बनाती हूँ
क्योंकि मृत्युदंड जैसी कोई सजा
बहुत कम होगी तुम्हारे लिए
तुम भी दर्द की पीड़ा में जीवन गुजारों
जैसे मैं जीने को अभिशप्त हूँ!
-कुमारी अर्चना ‘बिट्टू’
पता-मिरचाई बाड़ी, शीतला स्नान, वार्ड नं-08, कटिहार, बिहार
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