सुदामा का द्वारिका आगमन और नगर वर्णन- श्वेता राय

पग पग धरती नाप कर, पहुंचे प्रभु के देश|
लज्जा उनको आ गई, देखा जब निज वेश||

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पहुंचे विप्र प्रभु के धाम|
हिय जपता है जिनका नाम||
शांति शोभती हर स्थान|
देते हैं सब, सबको मान||

कहीं कहाँ दिखता है घात|
बहती है सुखकारी वात|
तमविहीन लगती है रात|
पुलकित झूमे सबके गात||

चमक रहा चम चम दिनमान|
पंछी गाते मधुरित गान|
प्रेमिल हैं सारे प्रतिमान|
खींच रहे जो सबका ध्यान||

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महलों का है ठाट अनूठा, धर्म ध्वजा फहराये|
छज्जे ऊपर छज्जा शोभे, हर्ष मेघ बरसाये||
द्वारे द्वारे बजे बधाई, हर प्राणी मुस्काये|
रंग बिरंगी प्यारी दुनिया, मन मेरा भरमाये|
देख अनूठा वैभव सारा, मुदित जिया हारसाया|
कान्हा से मिलने को आतुर, विप्र द्वारिका आया||

चन्दन से सुरभित गलियाँ थी, नगर सभी थे पावन|
गौ गोबर से लीपा दिखता, हर इक घर का आँगन||
सुन्दर दिखते बाग़ वहाँ के, उपवन मोहक लगते|
फूल पाँखुरी खिल खिल हँसकर, चित को मेरे ठगते||
निर्मल बहता पानी पीकर, तृप्ति क्षुधा ने पाया|
कान्हा से मिलने को आतुर, विप्र द्वारिका आया||

हरियाली लगती थी निश्छल, झरना झर झर बहता|
कोयल की बोली में सुमधुर, सुर पंचम था बसता||
ज्ञानी थे सब वहाँ के वासी, लगते थे सब ध्यानी|
कीर्तन की ध्वनियाँ भी मुझको, कब लगती अनजानी||
मंगल गाती नारी का स्वर, सुन आनन्द समाया|
कान्हा से मिलने को आतुर, विप्र द्वारिका आया||

अद्भुत था वो नगर निराला, अद्भुत थी परछाईं|
अद्भुत था जन जीवन सारा, अद्भुत मुँह दिखलाई||
सुखी लगे कण कण धरती का, प्रीत घटा थी छाई|
लोभ द्वेष से दूर सभी थे, प्रेमिल थी प्रभुताई||
वर्णन कहाँ कोई कर पाये, ऐसी थी वो माया|
कान्हा से मिलने को आतुर, विप्र द्वारिका आया||

-श्वेता राय