अना के जालो गर्द को बुहारने वाले।
जीस्त के गेसू ख़म को सँवारने वाले।।
इन दिनों चुप हैं शेख़ी बधारने वाले
सुधर गये क्या हमको सुधारने वाले।।
ज़ह्न में आज भी ज़िदा हैं मेरे,
नर्म रिश्तों के वे लहजे दुलारने वाले।।
ख़्वाब की किरचों ने छीन ली है नज़र
अंधें हो गये अब ख़्वाब पालने वाले!!
ग्रहण की तीरगी में चुप हुये कब
चाँद की आरती हर पल उतारने वाले।।
अना तेरी तो हम भी हैं ख़ुद्दार सुनो,
डूब जायेंगे, नहीं तुमको पुकारने वाले।।
आँख की रोशनी छीनी अना ने
भटक गये नई राहें निकालने वाले।।
-सुधीर पांडेय व्यथित