कश्मीर पर हक़ हो तेरा, हमको नहीं ग़वारा है
यह अखण्ड हिस्सा भारत का, प्राणों से भी प्यारा है
सरहद पर तू ख़ून बहाता तुझे शर्म कब आती है
नफ़रत की यूँ आग लगाना तुझे सदा ही भाती है
रहा हमारा सदा सभी से पावन भाईचारा है
कश्मीर पर हक़ हो तेरा, हमको गवारा नहीं है
हिम्मत नहीं तनिक भी जो तू आगे आ कर बात करे
छुपकर ख़ंजर भोंक पीठ पर, कायर बन कर घात करे
तू हर बार युद्ध में हमसे समर भूमि में हारा है
कश्मीर पर हक़ हो तेरा, हमको नहीं गवारा है
तेरी काली करतूतों को बच्चा-बच्चा जान गया
अलग-थलग तू पड़ा अकेला सारा जग पहचान गया
नेकी की राहों पर प्रतिक्षण होता गमन हमारा है
कश्मीर पर हक़ हो तेरा, हमको नहीं गवारा है
तेरी धरती पर आकर हम तुझको धूल चटाएंगे
दुनिया के नक्शे से दहशतगर्दी मुल्क हटायेंगे
निकल घरों से तेरी शामत बन हमने ललकारा है
कश्मीर पर हक़ हो तेरा, हमको नहीं गवारा है
-स्नेहलता नीर