कानपुर (हि.स.)। गेहूं की फसल के लिए फरवरी माह में तापमान बढ़ने के साथ ही बीमारियों का प्रकोप होने लगता है। ऐसे में किसानों को इस फसल को रोगों से सुरक्षित करने के लिए समुचित उपाय करना बहुत आवश्यक होता है। यह जानकारी बुधवार को चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कानपुर के मौसम वैज्ञानिक डॉ.एस.एन.सुनील पांडेय ने दी।
उन्होंने बताया कि यदि गेहूं की फसल 40-45 दिन की हो जाए तो बुआई करें। तीसरी सिंचाई बुआई के 60-65 दिन बाद करें। तीसरी सिंचाई दूरी सिंचाई के 20-25 दिन बाद यानी बाली निकलने के समय करें। इस माह में तापमान बढ़ने के साथ ही गेहूं में बीमारियों का प्रकोप होने लगता है, जिनमें कंडुआ रोग प्रमुख है। इन्हें पत्तियों और तनों पर काले धब्बों के रूप में पहचाना जा सकता है।
ऐसे लक्षण दिखते ही जिनेवे (डाइथेन जेड-78) या मैन्कोजेब (डाइथेन एम-45) का 800 ग्राम 250 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें, यदि आवश्यक हो तो एक या दो स्प्रे करें। थ्रस्ट रोग को रोकने के लिए, लक्षण दिखाई देते ही प्रोपिकोनाज़ोल (टिल्ट – 25 ईसी) 10 मिलीग्राम दें। दवा को एक लीटर पानी में घोल बनाकर शाम को छिड़काव करें और दूसरा छिड़काव 10 दिन बाद करें।
झुलसा रोग के नियंत्रण के लिए 2.5 किलोग्राम डाइथेन एम-45 या जिनेब का 10 दिन के अंतराल पर दो बार पर्णीय छिड़काव करें, जबकि जौ की फसल में आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहें। यदि खेत में कंडुआ रोग से प्रभावित बाली दिखे तो उसे तोड़कर, काटकर जला दें।
गेहूँ जैसे अन्य कीटों एवं रोगों पर नियंत्रण रखें, जबकि शरदकालीन मक्का रबी मक्का में तीसरी सिंचाई बुआई के 75-80 दिन पर तथा चौथी सिंचाई तीसरी सिंचाई के एक माह बाद करनी चाहिए, यदि मक्के में जंग और चारकोल सड़न का खतरा हो तो 400-600 ग्राम डाइथेन एम 45 को 200-250 लीटर पानी में घोलकर एक सप्ताह के अंतराल पर 2-3 पर्णीय छिड़काव करें और बसंत मक्के की बुआई पूरे महीने की जा सकती है।