केंद्र सरकार देश के विभिन्न राज्यों में स्थित रक्षा भूमि के विकास के लिए रक्षा भूमि नीति के नियमों में बदलाव लाने की तैयारी कर रही है। नए नियम के अनुसार सशस्त्र बलों से सार्वजनिक परियोजनाओं या अन्य गैर-सैन्य गतिविधियों के लिए खरीदी गई जमीन के बदले उतनी ही कीमत की जमीन या फिर उसके बाजार मूल्य का भुगतान किया जाएगा।
मनी कंट्रोल की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में अंग्रेजों द्वारा 1765 में बंगाल के बैरकपुर में पहली छावनी स्थापित की गई थी, इसलिए ब्रिटिश काल में भारत में सेना के अलावा किसी भी उद्देश्य के लिए रक्षा भूमि का इस्तेमाल प्रतिबंधित था।
इसके बाद में अप्रैल 1801 में ईस्ट इंडिया कंपनी के गवर्नर जनरल इन काउंसिल ने आदेश दिया कि छावनी में स्थित कोई भी बंगला और क्वार्टर जो कि जो सेना से संबंधित नहीं है, को भी किसी भी व्यक्ति को बेचने या कब्जा करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
अब केंद्र सरकार रक्षा भूमि सुधारों पर विचार करते हुए 2021 में इस नीति में बदलाव करने जा रही है और इसके लिए एक छावनी विधेयक 2020 को अंतिम रूप देने की दिशा में भी काम कर रही है, जिसका उद्देश्य छावनी क्षेत्रों के विकास पर फोकस करना है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि प्रमुख सार्वजनिक परियोजनाओं जैसे मेट्रो, सड़क, रेलवे और फ्लाईओवर के निर्माण के लिए आवश्यकतानुसार रक्षा भूमि तभी दी जाएगी, जब उतनी ही कीमत की जमीन या फिर उसके बाजार मूल्य का भुगतान किया जाएगा।
नए नियमों के तहत, आठ ईवीआई परियोजनाओं की पहचान की गई है। नए नियमों के अनुसार छावनी क्षेत्रों के तहत आने वाली जमीन का मूल्य स्थानीय सैन्य प्राधिकरण की अध्यक्षता वाली एक समिति द्वारा निर्धारित किया जाएगा, जबकि छावनी के बाहर की भूमि के लिए दर जिलाधिकारी तय करेंगे।