संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी मिशन में प्रथम सचिव आशीष शर्मा ने शांति की संस्कृति पर संयुक्त राष्ट्र महासभा के सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि आज की दुनिया में चिंताजनक चलन देखने को मिला है।
उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के चुनिंदा रुख की आलोचना करते हुए कहा कि संयुक्त राष्ट्र महासभा बौद्धों, हिंदुओं और सिखों के खिलाफ बढ़ती नफरत और हिंसा को पहचानने में नाकाम रही है।
आशीष शर्मा ने कहा कि भारत भी इस बात से पूरी तरह सहमत है कि यहूदी, इस्लाम और ईसाई विरोधी कृत्यों की निंदा करने की आवश्यकता है और देश भी इस प्रकार के कृत्यों की कड़ी निंदा करता है, लेकिन इस प्रकार के महत्वपूर्ण मामलों पर संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव केवल इन्हीं 3 इब्राहीमी धर्मों के बारे में बात करते हैं.
उन्होंने ने कहा कि यह गरिमामयी संस्था हिंदू, सिख और बौद्ध धर्मों के अनुयायियों के खिलाफ बढ़ती नफरत एवं हिंसा को पहचानने में नाकाम रही है। शांति की संस्कृति केवल इब्राहीमी धर्मों के लिए नहीं हो सकती और जब तक यह चुनिंदा रुख बरकरार है, दुनिया में शांति की संस्कृति वास्तव में फल-फूल नहीं सकती।
उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र एक ऐसी संस्था है, जिसे धर्म के मामले में किसी का पक्ष नहीं लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि हम वास्तव में चुनिंदा रुख अपनाते हैं, तो दुनिया अमेरिकी राजनीतिक शास्त्री सैम्युल हटिंगटन के सभ्यताओं का टकराव सिद्धांत को सही साबित कर देगी।
उन्होंने बताया कि भारत केवल हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म और सिख धर्म का ही जन्मस्थल नहीं है, बल्कि यह वह भूमि है, जहां इस्लाम, जैन, ईसाई और पारसी धर्मों की शिक्षाओं ने भी मजबूत जड़ें जमाई हैं और जहां इस्लाम की सूफी परंपरा फली-फूली है। उन्होंने कहा कि भारत केवल एक संस्कृति नहीं, बल्कि अपने आप में एक सभ्यता है।