भारतीय वैज्ञानिक प्रो. रमेश कुमार सिंह ने मोल्ड, टर्बाइन ब्लेड जैसे उच्च-मूल्य वाले घटकों तथा अन्य एयरोस्पेस कंपोनेंट की मरम्मत और बहाली के लिए पूरी तरह से ऐसी स्वायत्त तकनीक विकसित की है, जिसमें न्यूनतम मानव हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है। यह उम्मीद की जाती है कि यह तकनीक बहाली और मरम्मत उद्योग को अगले स्तर तक ले जाएगी और आत्मनिर्भर भारत के लिए एक व्यवहार्य अत्याधुनिक लेजर निर्माण पारिस्थितिकी तंत्र के न्यूक्लियेशन में मदद करेगी। वेल्डिंग और थर्मल स्प्रेइंग जैसी मौजूदा मरम्मत तकनीकें बस किसी प्रकार काम चलाने के लिए हैं और इनसे सटीकता और सूक्ष्मता भी नहीं मिल सकती हैं। इसके अलावा सभी मौजूदा प्रौद्योगिकियां मानव संचालित हैं और मरम्मत की गुणवत्ता व्यक्ति की निपुणता के स्तर पर निर्भर करती है।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान बॉम्बे के मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग में प्रोफेसर रमेश कुमार सिंह ने एक नई तकनीक विकसित की है जो उत्कृष्ट प्रक्रिया नियंत्रण के लिए लेजर का उपयोग करती है और न्यूनतम से शून्य मानव हस्तक्षेप के साथ पूरी तरह से स्वायत्त है। यह बढ़ी हुई गुणवत्ता और पुनरावृत्ति के साथ बहाली भी सुनिश्चित होती है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार के उन्नत विनिर्माण प्रौद्योगिकी कार्यक्रम के समर्थन से विकसित की गई इस प्रौद्योगिकी का सत्यापन और परीक्षण कर लिया गया है।
इस प्रौद्योगिकी की मदद से जिस भी दोषपूर्ण घटक को मरम्मत की आवश्यकता होती है, उसमें पहुंची क्षति का पता लगाने के लिए एक लेजर स्कैनर के माध्यम से स्वायत्त रूप से स्कैन किया जाएगा उसके बाद कुछ एल्गोरिदम के आधार पर उसे वहां से हटाने की प्रक्रिया निर्धारित की जाएगी। सामग्री निक्षेपण के लिए लेजर-डाइरेक्टेड इनर्जी डिपाजिट (एलडीईडी) तकनीक का उपयोग किया जाएगा, इसके बाद पुनर्नवीकृत उत्पाद का परिष्करण और स्वचालित निरीक्षण किया जाएगा।
विकसित प्रणाली में एक रोबोटिक बहाली प्रणाली शामिल है और इसे सभी प्रमुख गतिविधियों, जैसे स्कैनिंग पथ योजना, क्षति का पता लगाने, डिपाजिशन, परिष्करण और निरीक्षण के लिए स्वायत्त रूप से कार्य करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। इसके अलावा, अनुकूल अवशिष्ट तनाव को प्रेरित करने के लिए भौतिकी-आधारित मॉडल से प्रक्रिया पैरामीटर प्राप्त किए जाएंगे, जो कि एडीटिव निर्माण के माध्यम से पुनर्नवीकरण (रेस्टोरेशन) की प्रमुख सीमाओं में से एक है। यह ‘विज्ञान सक्षम प्रौद्योगिकी’ समाधानों के विकास का मार्ग प्रशस्त करता है, जो प्रो. रमेश कुमार सिंह के अनुसार, उच्च-मूल्य वाले घटकों की बहाली के लिए अभी उपलब्ध नहीं हैं।
लेजर डाइरेक्टेड इनर्जी डिपाजिट और दोष स्कैनिंग प्रणाली नामक इन दो प्रणालियों के अंतिम एकीकरण का काम चल रहा है और परियोजना प्रौद्योगिकी तैयारी स्तर के 7वें चरण में है। प्रो. रमेश ने भारत फोर्ज, आदित्य बिड़ला साइंस एंड टेक्नोलॉजी कंपनी और इंटरफेस डिजाइन एसोसिएट्स के साथ औद्योगिक उठाव के लिए गठबंधन किया है। प्रो. रमेश ने इस बारे में आगे बताया कि ‘यह विकसित तकनीक बहुत प्रभावशाली है, और विनिर्माण उद्योग के पुनर्नवीकरण और मरम्मत खंड के लिए दिशा बदलने वाला कदम है और इसमें बाजार की बड़ी संभावनाएं हैं।
इस तकनीक के माध्यम से जिन घटकों की मरम्मत की जा सकती है, वे बहुत उच्च मूल्य के हैं। सटीकता और सूक्ष्मता का स्तर, जो इस तकनीक के माध्यम से संभव है वह भी अभूतपूर्व है और वर्तमान अत्याधुनिक विधियों से बहुत आगे है’। प्रो. रमेश के अनुसार यह उम्मीद की जाती है कि प्रौद्योगिकी से मिलने वाले लाभों में लगभग बीस घटकों की मरम्मत के साथ मशीन की पूरी लागत भी शामिल होगी।