सुहागिन महिलाओं द्वारा पति की दीर्घायु और स्वास्थ्य की कामना के लिए किया जाने वाला करवा चौथ का व्रत कल बुधवार 4 नवंबर को है। इस दिन महिलाएं पति की लंबी उम्र के लिए उपवास रखकर चांद को अर्घ्य प्रदान करती हैं।
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार इस बार 4 नवंबर, बुधवार को करवा चौथ है और इस दिन बुध के साथ सूर्य ग्रह भी विद्यमान होंगे, दोनों की युति बुधादित्य योग बनाएगी। इसके अलावा इस दिन शिवयोग के साथ ही सर्वार्थ सिद्धि योग, सप्त कीर्ति योग एवं महादीर्घायु योग भी बन रहे हैं। सर्वार्थ सिद्धि में चतुर्थी तिथि प्रारंभ हो रही है, जबकि इस तिथि का अंत मृगशिरा नक्षत्र में होगा।
इस बार चतुर्थी तिथि का प्रारंभ 4 नवंबर को सुबह 4:24 बजे होगा, वहीं चतुर्थी तिथि का 5 नवंबर को सुबह 6:14 बजे समाप्त होगी। 4 नवंबर की शाम 8:16 बजे चंद्रोदय होगा। चंद्रोदय का समय हर शहर में अलग-अलग हो सकता है। वहीं करवा चौथ पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 5:29 बजे से शाम 6:48 बजे तक रहेगा।
शास्त्रों के अनुसार यह व्रत कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चन्द्रोदय व्यापिनी चतुर्थी के दिन करना चाहिए। पति की दीर्घायु एवं अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए इस दिन भालचन्द्र गणेश की अर्चना की जाती है। करवा चौथ में भी संकष्टी गणेश चतुर्थी की तरह दिन भर उपवास रखकर रात में चन्द्रमा को अर्घ्य देने के उपरांत ही भोजन करने का विधान है।
इस दिन भगवान शिव-पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, गणेश एवं चंद्रमा का पूजन करें। पूजन करने के लिए बालू अथवा सफेद मिट्टी की वेदी बनाकर उपरोक्त वर्णित सभी देवों को स्थापित करें। शुद्ध घी में आटे को सेंककर उसमें शक्कर अथवा खांड मिलाकर मोदक नैवेद्य हेतु बनाएँ। काली मिट्टी में शक्कर की चासनी मिलाकर उस मिट्टी से तैयार किए गए मिट्टी के करवे अथवा तांबे के बने हुए करवे। 10 अथवा 13 करवे अपनी सामर्थ्य अनुसार रखें।
पूजन के दौरान बालू अथवा सफेद मिट्टी की वेदी पर शिव-पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, गणेश एवं चंद्रमा की स्थापना करें। मूर्ति के अभाव में सुपारी पर धागा बाँधकर देवता की भावना करके स्थापित करें। पश्चात यथाशक्ति देवों का पूजन करें। वर्तमान समय में करवा चौथ व्रतोत्सव ज्यादातर महिलाएं अपने परिवार में प्रचलित प्रथा के अनुसार ही मनाती हैं, लेकिन अधिकतर स्त्रियां निराहार रहकर चन्द्रोदय की प्रतीक्षा करती हैं।
करवा चौथ व्रत विधि-
करवा चौथ के दिन महिलाएं सूर्योदय से पहले जागकर सरगी खाकर व्रत की शुरुआत करती हैं। इस व्रत में सरगी का विशेष महत्व होता है। सरगी में मिठाई, फल और मेवे होते हैं, जो उनकी सास उन्हें देती हैं। उसके बाद महिलाएं पूरे दिन निर्जला व्रत रखती हैं। उसके बाद शाम को छलनी से चांद देखकर और पति की आरती उतारकर अपना व्रत खोलती हैं। अधिकांश परिवारों में पति के हाथों से पानी पीकर पत्नी उपवास खोलती है।