भारतीय रेलवे द्वारा 24 अक्टूबर 1984 को निर्मित भारत की पहली मेट्रो- कोलकाता मेट्रो रेलवे लगभग 40 वर्षों से कोलकाता की जीवन रेखा के रूप में कार्य कर रही है। कोलकाता मेट्रो रेलवे में, मेट्रो रेक को बिजली की आपूर्ति स्टील थर्ड रेल के माध्यम से 750वी डीसी पर रोलिंग स्टॉक को की जाती है। मेट्रो रेक पर लगा स्टील से बना थर्ड रेल करंट कलेक्टर (टीआरसीसी) थर्ड रेल से विद्युत प्रवाह एकत्रित करता है। कोलकाता मेट्रो रेलवे पिछले 40 वर्षों से स्टील थर्ड रेल का उपयोग कर रहा है।
कोलकाता मेट्रो रेलवे ने अब स्टील थर्ड रेल के साथ मौजूदा कॉरिडोर में रेट्रो फिटमेंट के साथ-साथ निर्माण के लिए किए जा रहे सभी आगामी गलियारों में कम्पोजिट एल्यूमीनियम थर्ड रेल का उपयोग करने का निर्णय लिया है। इस अत्याधुनिक बदलाव के साथ कोलकाता मेट्रो रेलवे अब लंदन, मॉस्को, बर्लिन, म्यूनिख और इस्तांबुल मेट्रो के समान आधुनिक सुविधाओं से युक्त हो जाएगा और इन्हीं के क्लब के सदस्य के रूप में शामिल हो जाएगा। इन स्थानों में भी स्टील थर्ड रेल से एल्यूमीनियम थर्ड रेल में मेट्रो परिवर्तित हुई है।
इस्पात पर एल्यूमीनियम मिश्रित थर्ड रेल से होने वाले लाभ
- प्रतिरोधक विद्युत प्रवाह की हानि में कमी आएगी और बेहतर कर्षण वोल्टेज स्तर होगा क्योंकि स्टील थर्ड रेल का प्रतिरोध समग्र एल्यूमीनियम थर्ड रेल की तुलना में लगभग छह गुना अधिक है।
- स्टील थर्ड रेल की तुलना में कम ट्रैक्शन सबस्टेशन यानी 35 किमी मेट्रो कॉरिडोर के लिए लगभग 210 करोड़ रुपये के पूंजी निवेश की सीधी बचत।
- कम वोल्टेज ड्रॉप कोलकाता मेट्रो रेलवे के पास उपलब्ध एक ही रेक के साथ तेजी से गतिवृद्धि प्राप्त करने की सुविधा होगी।
- कम रखरखाव और लागत- हर 5 साल में थर्ड रेल की पेंटिंग की आवश्यकता अब और नहीं होगी। थर्ड रेल आयाम के मापन की आवृत्ति में काफी कमी आ सकती है। जंग के कारण नुकसान की संभावना नहीं होगी।
- ट्रेन संचालन की दक्षता में सुधार।
- ऊर्जा दक्षता में भारी सुधार और कार्बन फुटप्रिंट में कमी।
- कम्पोजिट एल्यूमिनियम थर्ड रेल का उपयोग करके प्रति वर्ष अनुमानित ऊर्जा बचत लगभग 6.7 मिलियन यूनिट हो सकती है।
- रेलगाडियों का अगला हिस्सा बेहतर होगा।