जब माँ सिंहवासिनी कामाख्या से बिहार के थावे पहुँची

तीनों लोकों में व्याप्त माँ जगदम्बा सर्वव्यापी अभयंकर रूप महाशक्ति की संचालिका सत्य शाश्वत मुल्यों की धरणि आदियोगिनी माँ वैष्णवी जिनकी महिमा समस्त लोकों में विद्यमान है, आज मैं आप को एक ऐसी कहानी बताने जा रही हूँ जो पूर्ण रूप से सत्य पर आधारित है ये कथा वर्षो पुरानी है। आज भी माता की महिमा और उनके अन्नय भक्त रहषु भगत का गुणगान संगीत या मंच पर नाटक के माध्यम से किया जाता है। 

बिहार राज्य के गोपालगंज में थावे नाम का गाँव है, उस काल में थावे हथुआ रियासत का गाँव हुआ करता था। थावे गाँव में निम्न वर्ग के रहषु भगत रहा करते थे। वे माता के परम भक्त थे। माता उनकी पूजा अर्चना से प्रसन्न होकर उन्हें नित्य दर्शन दिया करती थीं। हथुआ रियासत के राजा मनन सिंह भी अपने आप को माता का बहुत बड़ा भक्त कहते थे।

एक समय ऐसा आया जब राज्य अकाल के भयंकर चपेट में आ गया। राजा मनन सिंह के अनाज का भंडार भी समाप्त होने की कगार पर आ गया। इधर रहषु भगत जंगल से घास-फूस ला कर अपने दरवाजे पर रख देते और रात में घास-फूस अनाज बन जाता, जिसे माँ के सिंहों द्वारा अनाज को दौंरी किया जाता (अनाज के डंठल को पैरों से कुचल कर अनाज निकालने की प्रक्रिया को दौंरी कहा जाता है)।

सुबह होते ही रहषु भगत अनाज को जरूरतमंदों में बांट देते थे। इस वाक्ये को सुनकर राजा मनन सिंह को विश्वास नहीं हुआ। उन्होंने अपने सैनिकों को आदेश दिया कि दरबार में रहषु भगत को प्रस्तुत किया जाए। जब रहषु भगत राज दरबार में उपस्थिति हुए राजा मनन सिंह भगत को देखते ही सर्वप्रथम पाखंडी कह कर संबोधित किये और प्रश्न पर प्रश्न करने लगे तथा स्वयं को माता का अन्नय भक्त बताने लगे।

रहषु भगत ने विनम्रता से राजा के सभी प्रश्नों के उत्तर दिये और ये भी बताया कि मैं जो भी करता हूँ माँ के कृपादृष्टि से ही करता हूं। माँ हमें नित्य अपना दर्शन भी देतीं हैं। यह सुनकर राजा अत्यंत क्रोधित हुए और कहा हमारे घर भी विधि विधान से माँ की पूजा होती है। तो आज तक दर्शन नहीं प्राप्त हुए, तुम नीच जात के आडंबरी पाखंड रचते हो यदि वास्तव में ऐसा है तो बुलाओ अपनी माँ को मैं भी देखूं तुम्हारी भक्ति की शक्ति एवं माता के अन्नय भक्त का उपहास उड़ाया। 

रहषु भगत राजा को विनम्रता पूर्वक समझाते हुए कहा हे महाराज यदि माता यहां प्रकट हुई तो अनर्थ हो जायेगा।  परन्तु राजा ने एक न सुनी। रहषु भगत असम की माँ कामाख्या का गुहार करने लगे माँ चेतावनी देने लगीं मैं आ जाऊगीं परन्तु कह दे मुर्ख से भयंकर प्रलय के रूप को सहना पड़ेगा। सब कुछ तहस-नहस हो जायेगा। रहषु भगत राजा को समझाने लगे पर राजा कहां मानने वाले थे, वे अपनी हठ पर जमे रहे। 

माता का आसन कामाख्या से प्रस्थान कर कोलकाता आकर रुका जो कि (काली रूप में दक्षिणेश्वर में विराजमान हैं) एक बार पुनः माता रहषु भगत को सचेत करने लगीं, रहषु भगत राजा को समझाने में विफल हुए कोलकाता से चलकर माता बिहार की राजधानी पटना में रुकीं (यहां माता पटन देवि के नाम से विख्यात हुई)। इधर रहषु भगत राजा से कहने लगे, यदि माँ यहां आतीं हैं तो हे राजन न मैं जीवित बचूंगा और न आप समस्त राज्य को माता के कोप का भाजन बनना पड़ेगा। 

परन्तु राजा अपने हठ पर अडे़ रहे और रहषु भगत को अपशब्द कहने लगे तो भगत माता को निवदेन करने लगे हे माँ अब तुम आ ही जाओ, मैं रहूं या ना रहूं मेरी भक्ति लज्जित ना हो। पटना से माता का आसन उठा बिहार के झपरा जिले में स्थित आमी में (माँ दुर्गा के रूप में वर्णित हुई ) माँ रूक कर कहने लगीं रहषु समझा दे मुर्ख पापी राजा को परन्तु रहषु भगत का कहा राजा मनन सिंह एक न मानें।

माता का आगमन होते ही चारों ओर प्रलयकारी आधियाँ चलने लगी भरी सभा रहषु भगत के मस्तक को चीर माता के हाथ सहित कंगन दिखने लगा वहीं अकस्मात राजा मनन सिंह की मृत्यु हो गयी एवं राज पाट का अंत हो गया। महल भूमिगत हो गये। कहीं आग का भयंकर मंजर तो कहीं पानी का सैलाब उमड़ पड़ा और अंत में सब कुछ तहस नहस हो गया। 

कामाख्या माता एक सिद्ध पीठ के रूप में थावे वाली माई के नाम से प्रसिद्ध हुई। माता के मंदिर के बगल में रहषु भगत का मंदिर है और सिंहों द्वारा अनाजों का दौंरी करते हुए प्रतिमा स्थापित है तथा राजा मनन सिंह का महल जो खँडहर बन कर माँ के प्रचंड क्रोध का प्रमाण देता है। यहां वर्ष भर श्रद्धालुओं की भीड़ देखने को मिलती है। प्रमुख रूप से शारदीय नवरात्र तथा चैत्र नवरात्र में देश विदेश से श्रद्धालु माँ का आशीर्वाद लेने आतें हैं।

प्रार्थना राय
देवरिया, उत्तर प्रदेश

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