सनातन संस्कृति में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। हिन्दू पंचांग के अनुसार यूं तो वर्ष में 24 एकादशियां आती हैं और हर एकादशी का अपना एक विशेष महत्व है। पंचांग के अनुसार भादो मास में शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी कहा जाता है। इसे जलझूलनी एकादशी या डोल ग्यारस आदि नामों से भी जाना जाता है। इस दिन विष्णु भगवान के वामन अवतार की पूजा की जाती है।
इस बार परिवर्तिनी एकादशी शुक्रवार 17 सितंबर को पड़ रही है। पौराणिक मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु ने योग निंद्रा के दौरान करवट बदला था, इसलिए ही इस एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी कहा जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार इस दिन राजा बलि से भगवान विष्णु ने वामन रूप में उनका सब कुछ दान में मांग लिया था। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर अपनी प्रतिमा भगवान विष्णु ने सौंप दी थी। इस वजह से इसे वामन ग्यारस भी कहते हैं।
पुराणों में भी परिवर्तिनी एकादशी के व्रत के महत्व के बारे में बताया गया है। कहा जाता है कि जो व्यक्ति इस दिन व्रत रखता है उसे सभी तरह के पापों से मुक्ति मिल जाती है। इस दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा की जाती है। कहा जाता है कि इस दिन व्रत रखने वाले को वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। वहीं शास्त्रों के अनुसार इस दिन माता लक्ष्मी की पूजा करने से धन की कमी दूर होती है।
पंचांग के अनुसार एकादशी तिथि 16 सितंबर को सुबह 9:39 बजे से शुरू हो कर 17 सितंबर को सुबह 8:08 बजे तक रहेगी, इसके बाद द्वादशी तिथि शुरू हो जाएगी। हालांकि एकादशी तिथि 16 सितंबर को पूरे दिन रहेगी, लेकिन इस दिन का सूर्योदय एकादशी तिथि के पहले पड़ रहा है। इसलिए उदया तिथि की मान्यता के अनुसार परिवर्तिनी एकादशी शुक्रवार 17 सितंबर को मनाई जाएगी।