नई दिल्ली (हि.स.)। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बुधवार को यूएई के अबूधाबी स्थित बीएपीएस मंदिर का उद्घाटन किया। मंदिर उद्घाटन के बाद उन्होंने बोचासनवासी अक्षर पुरुषोत्तम स्वामीनारायण संस्था (बीएपीएस) मंदिर में पूजा-अर्चना की।
प्रधानमंत्री का स्वागत करते हुए महंत स्वामी महाराज ने प्रधानमंत्री मोदी को माला पहनाई। इस दौरान प्रधानमंत्री ने दुनिया भर के 1,200 से अधिक बीएपीएस मंदिरों में एक साथ की गई ‘वैश्विक आरती’ में भाग लिया। यहां उन्होंने मंदिर में वर्चुअल गंगा, यमुना नदी में जल चढ़ाया। उद्घाटन कार्यक्रम के बाद प्रधानमंत्री ने मंदिर निर्माण में शामिल रहे कारीगरों और मजदूरों से मुलाकात की।
यह मंदिर 27 एकड़ में फैला है और इसकी ऊंचाई 108 फीट है। इसके निर्माण में 18 लाख ईंटों का इस्तेमाल किया गया है। दुनिया भर के अन्य सभी बीएपीएस मंदिरों की तरह यह मंदिर हर किसी के लिए खुला है। पारंपरिक नागर शैली में बना यह मंदिर सार्वभौमिक मूल्यों, विभिन्न संस्कृतियों के सद्भाव की कहानियों, अवतारों और हिंदू आध्यात्मिक नेताओं का प्रतिनिधित्व करता है।
मंदिर के बाहरी हिस्से में राजस्थान के गुलाबी बलुआ पत्थर का उपयोग किया गया है। मंदिर के आंतरिक भाग में इटालियन मार्बल का उपयोग किया गया है। मंदिर में केंद्रीय गुंबद – ‘सद्भाव का गुंबद’ और ‘शांति का गुंबद’ हैं। सात शिखर, 12 समरन शिखर जिसको ‘घुम्मट’ कहते हैं। सात शिखर संयुक्त अरब अमीरात के सात अमीरातों के प्रतिनिधि हैं। इसमें 402 खंभे, 25,000 पत्थर के टुकड़े, मंदिर तक जाने वाले रास्ते के चारों ओर 96 घंटियां और गौमुख स्थापित हैं। इसमें नैनो टाइल्स का इस्तेमाल किया गया है, जो गर्मी की मौसम में भी पर्यटकों के लिए चलने में आरामदायक होगी। मंदिर के ऊपर बायीं ओर 1997 में अबू धाबी में मंदिर की कल्पना करने वाले परम पूज्य प्रमुख स्वामीजी महाराज की तस्वीर को एक पत्थर पर उकेरा गया है। मंदिर के ऊपरी दाहिनी ओर उस समय की स्मृति उकेरी गई है जब परम पूज्य महंत स्वामीजी महाराज ने 2019 में आधारशिला रखी थी।
मंदिर में किसी भी प्रकार के लोहे और स्टील का नहीं बल्कि पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है। मंदिर में गोलाकार, षटकोणीय जैसे विभिन्न प्रकार के खंभे देखे जा सकते हैं। यहां एक विशेष स्तंभ है, जिसे ‘स्तंभों का स्तंभ’ कहा जाता है, इसमें लगभग 1400 नक़्क़ाशीदार छोटे स्तंभ बने हुए हैं। एक गुंबद में पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, पौधे आदि तत्वों की नक्काशी के माध्यम से मानव सह-अस्तित्व और सद्भाव को दर्शाया गया है।
मंदिर भारत के उत्तर, पूर्व, पश्चिम और दक्षिण भाग के देवता हिंदू आध्यात्मिकता का प्रतिनिधित्व करते हैं । इस प्रकार सभी 7 तीर्थस्थलों में विभिन्न देवता होंगे – भगवान राम, सीताजी, लक्ष्मणजी और हनुमानजी भगवान शिव, पार्वतीजी, गणपतिजी, कार्तिकेयजी, भगवान जगन्नाथ, राधा-कृष्ण, श्री अक्षर-पुरुषोत्तम महाराज (भगवान स्वामीनारायण और गुणातीतानंद स्वामी) भगवान तिरूपति बालाजी और पद्मावतीजी भगवान अयप्पाजी।
भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर में शिवपुराण और 12 ज्योतिर्लिंग उत्कीर्ण हैं। भगवान जगन्नाथ के मंदिर में, जगन्नाथ यात्रा/रथयात्रा अंकित है। भगवान कृष्ण को समर्पित इस मंदिर में भागवत और महाभारत की नक्काशी की गई है। इसी तरह, भगवान स्वामीनारायण, भगवान अयप्पा को समर्पित मंदिर में उनके जीवन, कार्य और शिक्षाओं को अंकित किया गया है। भगवान राम के मंदिर में रामायण की नक्काशी की गई है। मंदिर के आसपास की इमारतें आधुनिक और न्यूनतर हैं। मंदिर के चारों ओर पवित्र नदी की धाराएं निर्मित होती हैं। गंगा नदी मंदिर के दाहिनी ओर जा रही है। यमुना नदी मंदिर के बायीं ओर जा रही है। इन पवित्र नदियों का जल यहां लाया गया है। जहां गंगा नदी गुजरती है वहां वाराणसी जैसा घाट बनाया गया है।
मंदिर के प्रवेश द्वार पर आठ मूर्तियां बनाई गईं हैं, जो आठ मूल्यों का प्रतीक हैं, यानी विश्वास की मूर्ति, दान की मूर्ति, प्रेम की मूर्ति। ये आठ मूर्तियां आठ मूल्य हैं, जिन पर हमारा सनातन धर्म आधारित है। ऐतिहासिक शख्सियतों, संतों और आचार्यों की मूर्तियां हैं, जिन्होंने इन मूल्यों को बनाए रखा है ।
भारतीय सभ्यता के अलावा अन्य देशों की प्राचीन सभ्यताओं का भी समावेश किया गया है- माया, एज्टेक, इजिप्शियन, अरबी, यूरोपीय, चीनी और अफ़्रीकी सभ्यता शामिल है। सभा हॉल की 3000 लोगों की क्षमता हैं। इसके अलावा सामुदायिक केंद्र, प्रदर्शनियां, अध्ययन और मजलिस कक्ष हैं।
मंदिर की विशेषता है कि एक मुस्लिम राजा ने एक हिंदू मंदिर के लिए भूमि दान की है। यहां मुख्य वास्तुकार कैथोलिक ईसाई है। परियोजना प्रबंधक एक सिख थे। संस्थापक डिजाइनर एक बौद्ध हैं। निर्माण कंपनी एक पारसी समूह की है और निर्देशक जैन परंपरा से आते हैं।