विद्युत मंत्रालय ने सरकार के सभी केंद्रीय मंत्रालयों को एक परामर्श जारी किया है। परामर्श में कहा गया है कि वे अपने प्रशासनिक नियंत्रण वाले संगठनों को प्राथमिकता के आधार पर प्रीपेड स्मार्ट मीटर लगाने का काम सुनिश्चित करने का निर्देश दें। इसी प्रक्रिया के तहत मंत्रालयों को भी इस संबंध में सभी जरूरी आदेश जारी करने को कहा गया है। इसके बाद वित्त मंत्रालय ने सभी केंद्रीय मंत्रालयों और केंद्रीय विभागों को किसी भी बैंक गारंटी पर जोर दिए बिना बिजली के प्रीपेड मीटर के लिए अग्रिम भुगतान करने में सक्षम बनाने के साथ-साथ उचित लेखा व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए एक स्पष्टीकरण जारी किया।
सभी सरकारी विभागों में प्रीपेड स्मार्ट मीटर की व्यवस्था न केवल विद्युत वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) को वित्तीय स्थिरता, ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देने के रास्ते पर वापस लाने में सरकार की प्रतिबद्धता सुनिश्चित करने में एक लंबा रास्ता तय करेगी, बल्कि इस तरह के समान तंत्रों को परिभाषित करने के लिए राज्यों द्वारा अनुकरण के लिए एक मॉडल के रूप में भी काम करेगी जो अपने स्वयं के विभागों द्वारा बिजली की बकाया राशि के पूर्व भुगतान का समर्थन करते हैं।
भारत सरकार सभी उपभोक्ताओं को निर्बाध, विश्वसनीय और गुणवत्तापूर्ण बिजली आपूर्ति प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है, जिसके लिए एक परिचालन कुशल और वित्तीय रूप से स्थिर विद्युत क्षेत्र जरूरी है। विद्युत वितरण कंपनियों को अक्सर सबसे महत्वपूर्ण, लेकिन बिजली क्षेत्र की मूल्य श्रृंखला में सबसे कमजोर कड़ी कहा जाता है, क्योंकि मूल्य श्रृंखला के निचले भाग में उनकी खराब वित्तीय स्थिति का नकारात्मक प्रभाव ऊपर तक होता है।
वित्तीय घाटे का कारण बनने वाली परिचालन अक्षमताओं के अलावा, बिजली के उपयोग के लिए भुगतान में देरी एवं अपर्याप्त भुगतान के कारण केंद्र और राज्य सरकारों, शहरी तथा ग्रामीण स्थानीय निकायों, और सरकारी बोर्ड एवं निगमों सहित सरकारी विभागों के बढ़ते बिजली बकाया भी विद्युत वितरण कंपनियों में नकदी प्रवाह से जुड़े संकट का कारण बनते हैं।
कमियों को दूर करने के लिए विद्युत वितरण कंपनियों द्वारा प्राप्त अतिरिक्त कार्यशील पूंजी पर ब्याज का बोझ उनकी लागत पर मुद्रास्फीति का दबाव बनाता है, जिससे उनकी व्यवहार्यता पर और दबाव पड़ता है। राज्यों से प्राप्त अनुमानों से पता चलता है कि वित्त वर्ष 2020-21 के अंत में सरकारी विभाग का बकाया बिजली बिल 48,664 करोड़ रुपये का है, जो कि विद्युत क्षेत्र के वार्षिक कारोबार का एक बड़ा हिस्सा नौ प्रतिशत है।
वितरण क्षेत्र की परिचालन दक्षता और वित्तीय स्थिरता में सुधार के लिए, भारत सरकार ने संशोधित वितरण क्षेत्र योजना को मंजूरी दी है जो एक सुधार-आधारित और परिणाम-संबद्ध योजना है। यह योजना मौजूदा विद्युत वितरण कंपनियों को परिचालन की दृष्टि से कुशल और वित्तीय रूप से स्थिर बनाने के लिए उन्हें बदलने का प्रयास करती है। इस योजना के तहत किए जाने वाले क्रांतिकारी उपायों में से एक, कृषि उपभोक्ताओं को छोड़कर सभी बिजली उपभोक्ताओं के लिए एक चरणबद्ध तरीके से प्रीपेड स्मार्ट मीटर स्थापित करना है, जिसके लिए योजना परिव्यय का लगभग आधा हिस्सा प्रतिबद्ध किया गया है।
केंद्र और राज्य सरकारों, शहरी एवं ग्रामीण स्थानीय निकायों, तथा सरकारी बोर्ड एवं निगमों सहित सभी सरकारी विभागों में प्रीपेड स्मार्ट मीटर लगाने को प्राथमिकता दी गई है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सभी सरकारी विभाग जब भी और जहां भी विद्युत सेवाओं का इस्तेमाल करें, उसके लिए उचित बजट बनाएं और भुगतान करें।