भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड ने म्यूचुअल फंड कंपनियों से अपने डिविडेंड प्लान के नाम बदलने के लिए कहा है। इनमें मौजूदा और नई दोनों स्कीमें शामिल हैं।
सेबी ने म्यूचुअल फंड कंपनियों से निवेशकों को यह भी साफ बताने के लिए कहा है कि वे उन्हीं की पूंजी का कुछ हिस्सा डिविडेंड के तौर पर देते हैं। जानकारी के अनुसार फंड हाउस डिविडेंड ऑप्शन में तीन तरह के विकल्प देते हैं।
हर एक मौजूदा स्कीम के साथ न्यू फंड ऑफर के लिए इन तीनों के नाम बदले जाने हैं।
डिविडेंड पेआउट ऑप्शन का नाम बदलकर पेआउट ऑफ इनकम डिस्ट्रीब्यूशन कम कैपिटल विदड्रॉल ऑप्शन किया जाएगा। डिविडेंड रीइनवेस्टमेंट का नाम रीइनवेस्टमेंट ऑफ इनकम डिस्ट्रीब्यूशन कम कैपिटल विदड्रॉल प्लान होगा। डिविडेंड ट्रांसफर प्लान को ट्रांसफर ऑफ इनकम डिस्ट्रीब्यूशन कम कैपिटल विदड्रॉल प्लान के नाम से जाना जाएगा।
जानकारों के अनुसार ऐसे कई मामले देखने में आए हैं जहां इक्विटी और हाइब्रिड प्रोडक्टों को नियमित डिविडेंड का भुगतान करने का वादा करके बेचा गया है। कई निवेशक प्रोडक्ट से जुड़े जोखिम को समझे बगैर ऐसी स्कीमों को खरीद लेते हैं। जब बाजार लुढ़कता है तो फंड हाउस डिविडेंड का भुगतान नहीं करते हैं। निवेशक भी इन्हें यह सोचे बगैर भुना लेते हैं कि यह उन्हीं की पूंजी का हिस्सा है।
सेबी ने म्यूचुअल फंड कंपनियों को सुनिश्चित करना होगा कि वे इनकम डिस्ट्रीब्यूशन और कैपिटल डिस्ट्रीब्यूशन दोनों को अलग-अलग रखें। इनकम डिस्ट्रीब्यूशन नेट एसेट वैल्यू यानी एनएवी का बढ़ना है। दोनों तरह के डिस्ट्रीब्यूशन को एसेट मैनेजमेंट कंपनियों को कंसोलिडेटेड अकाउंट स्टेटमेंट में बताना जरूरी है।
इसके अलावा सेबी की ओर से जारी सर्कुलर के अनुसार सभी म्यूचुअल फंड्स को अब रिस्क-ओ-मीटर में 5 के बदले 6 संकेत दिखाने होंगे। सेबी के सर्कुलर के मुताबिक अब एक संकेत very high risk का भी होगा।
नई स्कीम के साथ साथ पुरानी स्कीमों के लिए भी ऐसा करना जरूरी होगा। अभी रिस्क को मापने के लिए 5 श्रेणियां हैं। जिनमें लो, मॉडरेटरी लो, मॉडरेट, मॉडेटरी हाई और हाई। अब इसमें वेरी हाई भी जोड़ा जाएगा।
सभी म्यूचुअल फंड्स के लिए हर महीने इस रिस्क-ओ-मीटर की समीक्षा करनी होगी। बदलाव की जानकारी ई-मेल या एसएमएस के ज़रिए सभी यूनिटहोल्डर्स को देना होगा। पोर्टफोलियो का ब्योरा भी महीना पूरा होने के 10 दिन के भीतर अपनी और AMFI वेबसाइट पर बताना होगा।
इसके साथ ही कारोबारी साल खत्म होने के बाद भी इसका ब्योरा शेयर करना होगा। जिसमें ये बताना होगा कि कारोबारी साल की शुरुआत में क्या था और कारोबारी साल के अंत में रिस्क-ओ-मीटर में क्या बदलाव हुआ और कितनी बार हुआ।