Tuesday, November 26, 2024
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बेटा के सरकारी नौकरी में होने पर भी मृत कर्मचारी की बेटी को अनुकम्पा देने पर प्रतिबंध नहीं: हाईकोर्ट

प्रयागराज (हि.स.)। इलाहाबाद हाइकोर्ट ने अपने एक निर्णय में कहा कि यदि मृत कर्मचारी का पति या पत्नी पहले से ही सरकारी रोजगार में है तो अनुकम्पा नियुक्ति नहीं देने की वैधानिक शर्त केवल पति या पत्नी तक ही सीमित है और इसे मृत कर्मचारी के बच्चों तक नहीं बढ़ाया जा सकता।

न्यायालय ने माना कि अपने पिता की मृत्यु के समय बेटे का सरकारी नौकरी में होना अप्रासंगिक होगा। क्योंकि उसकी कमाई का उपयोग उसके अपने परिवार पत्नी और बच्चों के भरण-पोषण के लिए किया जा सकता है। सरकारी कर्मचारियों के लिए बनी मृतक आश्रित नियमावली 1974 के नियम 5 में मृत सरकारी कर्मचारी के परिवार से एक सदस्य को अनुकम्पा नियुक्ति का प्रावधान है। हालांकि, यूपी सरकार द्वारा नियम में संशोधन किया गया। मरने वाले सरकारी सेवकों के आश्रितों की भर्ती (पांचवां) संशोधन नियम 1999 में यह शर्त शामिल की गई कि मृत सरकारी कर्मचारी का जीवनसाथी सरकारी रोजगार में नहीं होना चाहिए।

यह आदेश जस्टिस मंजीव शुक्ला ने कुमारी निशा की याचिका पर पारित किया। कोर्ट ने इस संशोधन को ध्यान में रखते हुए कहा कि विधायिका 1974 के नियमों के नियम 5(1) में संशोधन करते समय इस तथ्य के प्रति सचेत है कि यदि मृत सरकारी कर्मचारी का बेटा सरकारी नौकरी में है तो उसकी कमाई शेष के जीवन यापन के लिए उपलब्ध नहीं हो सकती। मृत सरकारी सेवक के परिवार के सदस्य इस कारण से कि बेटे की कमाई उसके अपने परिवार (उसकी पत्नी और बच्चों) के जीवित रहने के लिए होती है। इसलिए केवल निषेध शामिल किया गया कि यदि मृत सरकारी सेवक का जीवित पति या पत्नी किसी सरकारी नौकरी में है तो परिवार के अन्य आश्रित सदस्य अनुकम्पा नियुक्ति के हकदार नहीं हैं।

मामले के अनुसार याची के पिता की प्राथमिक विद्यालय मनिकापुर ब्लॉक बेलघाट जिला गोरखपुर में हेडमास्टर के रूप में काम करते समय मृत्यु हो गई। वे अपने पीछे विधवा (याचिकाकर्ता की मां) दो अविवाहित बेटे और अविवाहित बेटी छोड़ गए। याचिकाकर्ता 75 प्रतिशत स्थायी रूप से दिव्यांग है और पूरी तरह से अपने पिता की कमाई पर निर्भर थी।

याचिकाकर्ता ने अनुकम्पा नियुक्ति के लिए आवेदन किया। आवेदन के साथ उसने शपथ पत्र भी दिया कि उसका बड़ा भाई सरकारी नौकरी में है, लेकिन परिवार से अलग रहता है। यह भी कहा गया कि यदि याचिकाकर्ता को उनके पिता की मृत्यु के बदले अनुकम्पा नियुक्ति दी जाती है तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं है।

जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी गोरखपुर ने याचिकाकर्ता का आवेदन इस आधार पर खारिज कर दिया था कि मृतक का बड़ा बेटा सरकारी कर्मचारी है। इसलिए परिवार पर कोई वित्तीय तनाव नहीं है। इसके अलावा यह कहा गया था कि सबसे बड़ा बेटा सरकारी नौकरी में है, इसलिए परिवार के सदस्य की अनुकम्पा नियुक्ति स्वीकार्य नहीं है।

न्यायालय ने माना कि विधायिका ने जानबूझकर नियम 5 में संशोधन किया, जिससे बेटे को इसमें शामिल न किया जा सके, क्योंकि उसकी कमाई का उपयोग उसके अपने परिवार (पत्नी और बच्चों) के भरण-पोषण में किया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि संशोधन के साथ-साथ 4 सितम्बर 2000 के सरकारी आदेश के मद्देनजर अनुकम्पा नियुक्ति के लिए याचिकाकर्ता का दावा खारिज नहीं किया जा सकता। क्योंकि हलफनामे में विशेष रूप से कहा गया कि भाई सरकारी नौकरी में है और परिवार (मां और भाई-बहन) से अलग रह रहा है।

अदालत ने कहा कि रिकॉर्ड पर ऐसी कोई सामग्री न होने के कारण कि भाई की कमाई परिवार के भरण-पोषण के लिए पर्याप्त है, जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी गोरखपुर का आदेश सही नहीं मानते हुए रद्द कर दिया।

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