वक़्त मिले तो लाभ उठाना
वक़्त गए फिर क्या पछताना?
ख़ैर! लगा रहता है दिनभर,
झूठ सही का आना-जाना
सच को सच में सच होने तक,
लग जाता है एक ज़माना
इंसा है इंसाँ का दुश्मन ,
ऐ इंसानों! मत झुठलाना
झूठ तुम्हें जब सच लगता है,
तो इस सच का क्या पैमाना?
फ़ेर नही सकते मुँह सच से,
पण्डित जी हों या मौलाना
कैसे आता तुमको रकमिश,
अफवाहों को आग लगाना?
-रकमिश सुल्तानपुरी