मेरा ख़त छुपा कर,
क्यों तुमने मुझे सताया।
तुम्हें प्यार हो गया तो,
फिर क्यों न मुझे बताया
पलकें झुकी तुम्हारी,
बेबस सा हो गया मैं
कलियों के बीच रहकर,
भौंरे सा खो गया मैं
क्यों चांद से चेहरे को,
बदली में है छुपाया
तुम्हें प्यार हो गया तो,
फिर क्यों न मुझे बताया
तेरा नाम लेके जब भी,
खुशबू हवा में महकी
बोझिल हुई निगाहें,
हुई चाल बहकी-बहकी
चाहत की ओढ़नी पे,
फिर क्यों मुझे सुलाया
तुम्हें प्यार हो गया तो,
फिर क्यों न मुझे बताया
आना कभी मिलने तो,
जी भर मुझे सताना
बाहें खुली रखूंगा,
मत खोजना बहाना
सावन में मस्त भौरों ने,
कलियों को फिर बुलाया
तुम्हें प्यार हो गया तो,
फिर क्यों न मुझे बताया
-राम सेवक वर्मा
विवेकानंद नगर, पुखरायां,
कानपुर देहात, उत्तरप्रदेश
मोबाइल- 9454344282