पुराने जख्म रिस रहे थे
आँखों से आँसू भी बह रहे थे
लबों पे सिसकियाँ मचल रही थी
एक उदास फिर से शाम ढल रही थी
और बात बस इतनी सी थी
कि तुम पास नहीं थे मेरे…
गले मे निवाला अटक रहा था
मन कहीं दूर भटक रहा था
साँसे भी तेज चल रही थी
हिचकियाँ रह-रह के निकल रही थी
और बात बस इतनी सी थी
कि तुम पास नहीं थे मेरे…
आँखों का काजल दह रहा था
ख़्वाबों का मकां भी ढह रहा था
तन्हाई की आग जल रही थी
कमी तुम्हारी शिद्दत से खल रही थी
और बात बस इतनी सी थी
कि तुम पास नहीं थे मेरे…
-रूची शाही