कुछ तो हमने भी प्रकृति पर कहर ढाया है
तभी तो बीच हमारे ये रक्तबीज कोरोना आया है
भूल चुके थे खुदा को, लूटपूट थी हर तरफ
हैवानों ने इंसानियत को नंगा नाच नचाया है
मॉंग लो मुआफी जमीं और आसमां से अब तो
एक दुश्मन से आज हमारी जंग का साया है
ये कैसा इम्तिहान है इंसान का इंसानियत से
मंदिर मस्जिद गुरूद्ववारों में आज कैद खुदाया है
सिखला रही प्रकृति हमको घरो में कैद कर
आजाद करदो पंछी जिनको कैदी तुमने बनाया है
बेखबर थे तुम, जब रोई थी जमीं, तडपा आसमाँ
सिखाने सबक इंसान को करोना वक्त बन आया है
होकर अब नियमबंद हमें बन आदित्य
रक्तबीज कोरोना का करना सफाया है
-श्रीमती बेनू सतीश कांत
सिविल लाइंज़, लुधियाना,
पंजाब, भारत