Friday, December 13, 2024

मोज़े: वंदना सहाय

वंदना सहाय

शहर का तापमान तेजी से गिर कर लोगों को ठंड की गिरफ़्त में कसे जा रहा था। ऐसे में सुकन्या जी अपनी मखमली लाॅन में बैठ दुर्लभ दर्शन धूप का आनंद ले रहीं थीं।

सहसा मौसम की नज़ाकत को देखते हुए उनका मन एक बार फिर से अखबार की सुर्खियाँ बटोरने का हो गया। उन्होंने एक सभा का आयोजन कर, बस्ती के गरीब बच्चों को बुलाया और सप्ताह में उन्हें एक दिन कंप्यूटर क्लास करवाने का एलान कर दिया। नाश्ते की उत्तम व्यवस्था के साथ मीडिया कर्मियों का विशेष रूप से ध्यान रखा गया। लोग इनकी संवेदनशीलता के कायल हो गए जब अपने जोरदार भाषण में उन्होंने बच्चों को ठंड से बचाने पर ध्यान देने की बात कह कर मोजे बँटवाये। सब कुछ बड़ी आसानी से हो गया। लक्ष्मी-सरस्वती की कृपा इन्हें समाज में महान समाजसेविका के रूप में स्थापित कर गयी थी।

दूसरे दिन सुबह वे आत्म मोह में डूबी कई अखबारों में निकली अपनी मोजे बाँटती तस्वीरों को निहार रहीं थीं कि दरवाजे की घंटी बजी।

विचारों की श्रृंखला टूटने से मन खिन्न-सा हो गया। यह काम करने वाली की छोटी-सी बेटी सुगिया थी। अधिक ठंड के कारण उसकी माँ की तबीयत खराब हो गयी थी और वह अपनी माँ की जगह काम करने आयी थी।

उन्होंने देखा कि उसने वही मोजे पहन रखे हैं, जो उन्होंने कल बँटवाये थे। पर आज उनकी संवेदना मौसम के तरह ठंडी थी।

उन्होंने सुगिया को मोजे घर के बाहर निकाल कर घर के भीतर संगमरमर के फ़र्श पर खड़े होकर बर्तन धोने को कहा, क्योंकि उन्हें डर था कि मोजों में लगी गंदे जगहों की धूल कहीं उनके घर को गंदा और उन्हें बीमार न कर दे।

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