रुक्मिणी अष्टमी पौष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाई जाती है। सनातन मान्यता है कि रुक्मिणी जी का जन्म पौष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हुआ था। भगवान विष्णु ने कृष्ण के रूप में जब जन्म लिया था, तब माता लक्ष्मी ने रुक्मिणी और राधा के रूप में जन्म लिया था। रुक्मिणी जी के रूप में माता लक्ष्मी का जन्म इसी तिथि में हुआ था।
इस वर्ष पौष मास 2024 में रुक्मिणी अष्टमी रविवार 22 दिसंबर को है। कृष्ण के भक्त इस दिन व्रत रखते हैं और यह मानते हैं की रुक्मिणी अष्टमी के दिन व्रत रखने से उनके धन-धान्य में वृद्धि होगी। इस दिन स्त्रियां प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करके भगवान सत्यनारायण, पीपल के वृक्ष और तुलसी के पौधे को जल अर्पण करती हैं।
हिन्दू पंचांग के अनुसार इस साल पौष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि का प्रारंभ रविवार 22 दिसंबर को दोपहर 2:31 बजे से हो रहा है, जिसका समापन अगले दिन सोमवार 23 दिसंबर 2024 को शाम 5:07 बजे होगा। ऐसे में उदयातिथि के अनुसार इस बार रुक्मिणी अष्टमी का व्रत सोमवार 23 दिसंबर 2024 को रखा जाएगा।
पूजन का शुभ समय
अभिजित मुहूर्त- दोपहर 12 बजे से 12:41 बजे तक।
गोधूलि मुहूर्त- शाम 5:27 बजे से 5:55 बजे तक।
पूजा विधि एवं महत्व
रुक्मिणी अष्टमी के दिन स्त्रियां सायंकाल गाय के घी का दीपक जलती हैं। कपूर से आरती करती हैं और पूजा आरती के बाद फलाहार ग्रहण करती हैं। रात जागरण करती हैं, रुक्मिणी जी की कहानी का श्रवण करती हैं। भगवान श्री कृष्ण के मंत्रों का पाठ कर अगले दिन नवमी को ब्राह्मणों को भोजन करा करके व्रत पूर्ण किया जाता है। उसके बाद स्वयं खाना खाया जाता है। रुक्मिणी अष्टमी के दिन भगवान श्री कृष्ण के साथ देवी रुक्मिणी की पूजा करने से जीवन के सभी सुख प्राप्त होते हैं।