भोपाल. ‘साहित्य में स्त्रीवाद कोई आरोप या बुराई नहीं है क्योंकि इसका विपक्ष पितृसत्तात्मक व्यवस्था है, इसका विलोम पुरुषवाद नहीं समझना चाहिए। इन अर्थों में चित्रा सिंह का काव्य सृजन स्त्रीवाद के पक्ष में दृढ़ता से खड़ा हुआ है।’ आब-ओ-हवा एवं स्पंदन, भोपाल के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित ‘कवि और कविता’ के अंतर्गत चित्रा सिंह की पुस्तक ‘धूप के नन्हे पॉंव’ पर एकाग्र कार्यक्रम में इस आशय के उद्गार साहित्यकार एवं पूर्व आईपीएस अनुराधा शंकर सिंह ने अध्यक्षीय उद्बोधन में व्यक्त किये।
आब-ओ-हवा के संपादक भवेश दिलशाद के अनुसार ‘कवि और कविता’ कार्यक्रम के अंतर्गत क्रमानुसार रचनापाठ, पुस्तक चर्चा एवं कवि से बातचीत जैसे सत्र हुए। चित्रा सिंह ने कम शब्दों में अधिक बात कहती अपनी क़रीब दर्जन भर कविताओं का पाठ कर सभागार को कविता के साथ कुशलता से जोड़े रखा। इसके बाद चर्चित रंगकर्मी एवं कवि हेमंत देवलेकर ने ‘धूप के नन्हे पॉंव’ की कविताई से जुड़े अनेक पहलुओं पर अपनी दृष्टि से चर्चा की और फिर कवि व समीक्षक द्वय सुमन सिंह एवं डॉ. रेखा पांडेय ने चित्रा सिंह के कृतित्व एवं रचनात्मक जीवन से जुड़े विषयों पर प्रश्नों के माध्यम से रोचक एवं सार्थक बातचीत की।
अध्यक्षीय वक्तव्य से पहले अपनी विशेष टिप्पणी में वरिष्ठ साहित्यकार मुकेश वर्मा ने स्पष्ट रूप से कहा कि अंतरंगता के साथ इस तरह की महफ़िलों के आयोजन साहित्यजगत में श्रीवृद्धि करने के लिए ज़रूरी हैं क्योंकि ऐसे आयोजनों में ही खुलकर और महत्वपूर्ण अभिव्यक्तियां लेखक समाज कर पाता है। इस विचार का समर्थन बाद में अध्यक्षीय उद्बोधन में किया गया। वास्तव में, इस टिप्पणी की भूमिका प्रशंसित रंगकर्मी/कवि विवेक सावरीकर ‘मृदुल’ की संक्षिप्त टिप्पणी ने तैयार की। उन्होंने कहा कि चित्रा सिंह के कविकर्म को लेकर जो बातचीत हुई उससे साफ़ पता चलता है कि वह उर्ध्वगामी सृजन कर रही हैं। ‘बजाय कॉंटों से दामन बचाने या तार तार होने के अवसादों को तवज्जो देने के वह शुभकामनाओं के फूलों को अपने दामन में समेटती हैं।’
टिप्पणियों के क्रम में स्पंदन संस्था की प्रमुख एवं वरिष्ठ साहित्यकार उर्मिला शिरीष के संदेश का वाचन किया गया एवं विदिशा से चर्चित कवि ब्रज श्रीवास्तव ने अपने संदेश में उल्लेख किया, ‘चित्रा सिंह की कविताएं पढ़ते हुए अमृता प्रीतम तो कभी गुलज़ार के रचनाकर्म जैसा अनुभव होता है और अक्सर वह हमारे आज के जटिल समय और संबंधों को भी बारीक़ी से अपने कवित्व में उकेरती हैं।’ इन टिप्पणियों के बीच हेमंत देवलेकर ने विस्तृत समाचलोचकीय ढंग से बिंदुवार अपनी बातें रखीं।
देवलेकर ने ‘धूप के नन्हे पॉंव’ की कविताओं के प्रमुख तत्वों के रूप में ‘प्रेम’, ‘आत्मविश्वास या साहस’ और ‘उम्मीद’ को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि चित्रा की कविताओं में प्रेम की गरिमा है, स्त्री स्वर है और इन कविताओं की भाषा में आक्रामकता प्रवेश नहीं करती है। इन कविताओं का एक और प्रमुख गुण आत्मविश्वास है। तमाम प्रतीक्षाओं, सूनेपन, एकाकीपन के बावजूद उनमें अदम्य जिजीविषा, साहस, फक्कड़पन और आनंद का अनुभव होता है। देवलेकर ने कविताओं की भाषा को जीवन्त और मार्मिक बताते हुए यह भी उल्लेख विशेष रूप से किया कि ये कविताएं अपने स्वरूप में शब्दों के अपव्यय के विरोधी हैं और सूत्र या सूक्ति के रूप में परिपक्वता दिखाती हैं न कि अधिक कहने के लालच में अनावश्यक शब्दों को ठूंसती हैं।
चित्रा सिंह की कविताओं की भाषा और शब्दावली को लेकर सुमन सिंह ने उल्लेख किया कि ये कविताएं भारी भरकम शब्दों से मुक्त और हृदय की भाषा की समर्थक हैं। इनमें प्रतीकात्मकता का सूक्ष्म खेल है तो आकार में छोटी लेकिन प्रभाव में ये कविताएं गहरी हैं। सुमन एवं रेखा पांडेय के प्रश्नों व जिज्ञासाओं पर चित्रा सिंह ने अपनी कविताओं की ही भांति संक्षेप में कुछ सार्थक टिप्पणी करते हुए श्रोताओं को अपने चिंतन एवं विचारणा से अभिभूत किया।
‘शुभकामनाओं के फूल’ को मिली दाद
‘मुझे संवेदनशीलता मॉं से मिली। प्रेम भी। इस अवस्था में भी मॉं की नज़रों में पिता की छवि वही दशकों पुराने मेरे उन पिता की है, जो उनके प्रेमी रहे। मॉं से प्रगतिशीलता और मुखरता के गुण भी मुझे मिले। ऐसे अनेक कारणों से मेरी कविताओं के मन के केंद्र में उनका प्रमुख स्थान है।’ अपनी कुछ कविताओं के संदर्भ में चित्रा सिंह ने अपनी नानी को भी आधुनिक सोच वाली महिला बताते हुए कहा कि उनकी प्रगतिशील समझ उनके जीवन के मूल में ही रची बसी रही। इसी तरह, अपने पिता प्रसिद्ध लेखक/कवि विजय बहादुर सिंह के बारे में बात करते हुए चित्रा ने कहा कि जितना प्रभाव आनुवांशिक रूप से पिता का आता है, उतना ही रहा क्योंकि होश संभालने की उम्र में पिता के सान्निध्य से वह अपेक्षित रूप से वंचित रहीं।
एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि जीवनयात्रा के पॉंच दशकों को कोई शीर्षक देना हो तो वह ‘शुभकामनाओं के फूल’ जैसा वाक्यांश चुनेंगी। इस दृष्टिकोण को पूरे सभागार से प्रशंसा एवं समर्थन प्राप्त हुआ। इसी प्रकार, चित्रा ने अपनी कविताओं के पीछे गूंजते स्त्री मन, सृजन प्रेरणाओं और विषय चयन आदि को लेकर भी अपने पक्ष रखे, जिसे श्रोताओं एवं मंच का भरपूर समर्थन मिलता रहा। अंतत: अध्यक्षीय वक्तव्य में अनुराधा शंकर ने अपने पितामह बाबा नागार्जुन के समय से चित्रा सिंह के परिवार के बीच आत्मीय संबंधों की स्मृतियों का उल्लेख करते हुए स्पष्ट शब्दों में कहा ‘जिन्हें बचपन से देखा, वह चित्रा सिंह एक स्थापित कवि के रूप में अपनी पहचान बना रही हैं, हमें और पूरे साहित्य समाज को उन पर गर्व है।’
औपचारिक रूप से आभार प्रदर्शन मनस्वी अपर्णा ने किया जबकि संचालन का दायित्व संभाले भवेश दिलशाद ने इस कार्यक्रम के पीछे के मूल उद्देश्य को इस तरह निरूपित किया कि पुरस्कारों, प्रकाशनों और मंचों की जोड़तोड़ एवं हंगामों से निस्पृह रहते हुए जो रचनाकार एकांत में सृजन को केंद्र में रख रहे हैं और महत्वाकांक्षाओं से परे रचना के अनुभवों/प्रयोगों को का आनंद ले रहे हैं, उन्हें साहित्य समाज के बीच उजागर करने के लिए आब-ओ-हवा भविष्य में भी इस प्रकार का सिलसिला बनाये रखने के लिए संकल्पित है। तक़रीबन ढाई घंटे के इस आयोजन में सर्वश्री इक़बाल मसूद, डॉ. किशन तिवारी, शमीम ज़ेहरा, मौसमी परिहार, पीयूष बबेले, जयजीत अकलेचा आदि मौजूद रहे।