रूची शाही
Join WhatsApp Group 1 यहाँ क्लिक करे
उम्मीदें टूटकर रेत सी बिखर गई होंगी
संवेदनाएं धूल सी उड़ गई होंगी
एहसास रोज-रोज तड़पे होंगे
और हर तड़प में होंगी
अरबों और खरबों सिसकियां
कोई एक दिन की बात नहीं होगी
मन हर लम्हा दबा होगा
लगे होंगे सालों साल उसको
तब तक न जाने कितने इंतजार मर गए होंगे
कितनी आहें मौन हो गई होंगी
कुछ शब्द खामोशी तोड़ के चीखें होंगे
कुछ हिचकियां फिर से घुट गई होंगी
अवसाद की परतें जमने लगी होंगी
फिर दफ्न होने लगा होगा हर जिया लम्हा
आंसू भी संघनित हो चुके होंगे
आंखों से फिर कुछ भी न उतरा होगा
यादें मटमैली सी पड़ी होंगी
पता नहीं उसने कितना सहा होगा
तब कहीं जा के मन
पत्थर हुआ होगा