रूची शाही
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आज तुम याद आए
पर पहले से जरा कम
तुम हमेशा से मुझे निष्ठुर ही लगे
मेरे रूठने या रोने पर
शायद ही कभी मनाया हो तुमने
सब कुछ महसूस करते हुए भी
तुमने मुझसे एक दूरी बनाए रखी
और मैं वहीं पहुंचना चाहती थी
जहां से तुम दूर रहना चाहते थे
ये जिद थी मेरी
कि तुम मिलो तो पूरी तरह मिलो
तुम मिलते तो रोज थे मुझसे पर
कभी प्यार लाते तो कभी भरोसा छोड़ देते
कभी परवाह लाते तो कभी दुलार भूल जाते
कभी इकट्ठे देते ही नहीं थे
मैं तंज करती लड़ती तुमसे
थक जाती तो रोकर अपने
कलेजे को पत्थर होने से रोक लेती
धीरे-धीरे मैं भी तुम्हारी तरह ही होने लगी
तुम्हारी तरह निष्ठुर होने में
अभी बहुत वक्त लगे शायद
पर तसल्ली है इस बात कि
तुम आज याद तो आए
पर पहले से जरा कम…