पल में बदलते रिश्ते- सुरेंद्र सैनी

यही देखना रह गया चलते-चलते
गिरगिट से लग रहे बदलते रिश्ते

कौन जाने अंदर, नासूर दबा था
जबकि लोग लग रहे हँसते-खेलते

ज़माने में बेगैरत जन भरे पड़े हैं
देख ना सके हमें फूलते-फलते

कामयाबी क्या ख़ुशी देती हमें
जब देख लिए घरोंदे टूटते-बिखरते

हम ही सबको बांध ना रख सके
किस बात पर उछलते-मचलते

तमाम उम्र ही रहे मुझको अखरते
‘उड़ता’ ये पल में बदलते रिश्ते

-सुरेंद्र सैनी बवानीवाल ‘उड़ता’
झज्जर, हरियाणा
संपर्क- 9466865227
ईमेल- [email protected]