बेबात का कोई प्यार जताया नहीं कभी।
सच है कि ये शऊर भी आया नहीं कभी।।
अपने सिवाय कोई भी भाया नहीं कभी।
उसके नसीब में सुनो साया नहीं कभी।।
हम इसलिये दरबार में शामिल न हो सके
शाही सुरों में सुर को मिलाया नहीं कभी।।
लौटा नहीं था जब तलक बेटा दुकान से
माँ ने निवाला एक भी खाया नहीं कभी।।
अज़्मत कमाल बख्सी कि फाँको के दौर में
फेंके हुये टुकड़े को उठाया नहीं कभी।।
ऐसा भी नहीं रोज ही आये तुम्हारी याद
सच ये भी है कि तुमको भुलाया नहीं कभी।।
हाँ ठीक कि सबको न खुशी बाँट सके हम
लेकिन किसी को हमने रुलाया नहीं कभी।।
ऐ दौर ए तरक्की तेरे जल्वों का ये समाँ
आँखो में रहा दिल में समाया नहीं कभी।।
वो था कि मेरे साथ हर इक दौर में रहा
ये और बात उसे देख तो पाया नहीं कभी।।
बेटे ने हर तकलीफ पे हँगामा किया है
माँ ने तो अपना दर्द बताया नहीं कभी।।
– सुधीर पाण्डेय व्यथित