आँख में गर नमी नहीं होती ।
सच कहें! शायरी नहीं होती ।।
वो तो क़िरदार है सन्दल, वरना
सांप की दोस्ती नहीं होती ।।
जिस्म के घाव गर नहीं गाते
बांसुरी, बांसुरी नहीं होती ।।
नींव के संग की ही होती है
गुम्बदों की हँसी नहीं होती ।।
रीढ़ ख़ुद्दार हो गयीं इतनी
कोई गर्दन तनी नहीं होती ।।
ख़्वाब हो जाते हम अगर माँ ने
आँख गिरवी रखी नहीं होती ।।
चाँद-सूरज को पूजने वालों
क़ब्र में रोशनी नहीं होती ।।
-सूरज राय सूरज