हथेली की लकीरों में छपा
बस इक तुम्हारा नाम हो
जिंदगी हमारी भले
फिर ख़ाक हो…
एक यही दुआ माँगते हैं
रोज़ हम अपने रब से
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यह सच है, हक़…
जोर जबरजस्ती से नहीँ मिलता,
मिल जाता है
यूँ हीं प्यार में,
उसे रोकने का
उसे टोकने का
उसके जिस्म पर,
उसके जान पर
यहां तक कि
उसकी आत्मा पर भी
हाँ सच है, हक़…
जोर जबरजस्ती से नही मिलता
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तुम्हारी यादों का बहाना
लेकर जिस सफ़र को
शुरू किया था मैंने
बहुत पहले,
उस सफ़र को अब
पूरा कर चुकी हूँ,
और मेरे इस दिल में,
उस बीते हुए सफर की,
थकान भी नही रही
इसलिए हमेशा के लिए
उन यादों से दूर जा रही हूँ
-पिंकी दुबे प्रकृति