मृत्यु के कगार पर बैठे हैं वे
फिर भी तृष्णा के तीर लगाए बैठे हैं वे
अनैतिकता की झोली भर कर वे
चल रहे हैं किस राह पर वे
मानव हित को छोड़कर वे
निज स्वार्थ साधने लगे हैं वे
कलयुग के कष्टदायी द्वार पर वे
मृत्यु का तांडव रच रहे हैं वे
विद्वत्ता सुप्त पड़ी है अब
मानवता का मौन टूटेगा कब
कलयुग का अंधकार छा जाएगा जब
प्रकृति की क्रोधाग्नि में जल जाएगा सब
दिनेश प्रजापत ‘दिन’
सांचौर, जालोर,
राजस्थान